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काल निर्धारण/271
का प्रारम्भ होता है । सौर माह राशियों के नाम से होता है । सौर माह में तिथियाँ 1 से चलकर महीने के अन्तिम दिन तक की गिनती में व्यक्त की जाती हैं । सौर माह, 29, 30, 31 या 32 दिन का होता है, अतः इसकी तिथियाँ एक से चलकर 29, 30, 31, 32 तक चली जाती हैं। चान्द्र वर्ष में ऐसा नहीं होता। उसमें महीना पहले दो पाखों में बाँटा जाता है । कृष्णपक्ष और शुक्ल पक्ष बदी या सुदी ये दो पाख प्रायः 15+15 तिथियों के होते हैं। ये प्रतिपदा से अमावस होकर द्वितीया (दौज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पाँच), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातें), अष्टमी (आठे), नवमी (नौमी), दशमी (दसमी), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस), पूर्णिमा (15) और अमावस्या (30) तक चलती है। ये सभी तिथियाँ कहलाती हैं और 15 तक की गिनती में होती हैं। उत्तरी भारत में चान्द्रवर्ष का मास पूणिमान्त माना जाता है क्योंकि पूर्णिमा को समाप्त होता है और कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है । नर्मदा के दक्षिण के क्षेत्र में चान्द्रवर्ष का महीना अमान्त होता है और शुक्ल पक्ष (सुदी) की प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है।
चान्द्रवर्ष के महीने उन नक्षत्रों के नाम पर रखे गये हैं जिन पर चन्द्रमा पूर्णकलाओं मे युक्त होता है, यानी पूर्णिमा के दिन से नक्षत्र और महिनों के नाम इस प्रकार हैं :
1. चित्रा-चंत्र (चैत) 2. विशाखा-वैशाख (वैसाख) 3. ज्येष्ठा-ज्येष्ठ (जेठ) । 4. अषाढ़ा-आषाढ़ (प्रसाढ़) 5. श्रवण-श्रावण (सावन) 6. भद्रा-भाद्रपद (भादों) 7. अश्विनी-आश्विन (या आश्वयुज) = (क्वार) 8. कृतिका-कार्तिक (कातिक) 9. मृगशिरा-मार्गशीर्य (आग्रहायन-अगहन)
('अग्रहायन' सबसे आगे का 'अयन'--यह नाम सम्भवतः इसलिये पड़ा कि बहुत प्राचीन काल में वर्ष का प्रारम्भ चैत्र से न होकर 'मार्ग शीर्ष'
से होता था-अतः यह सबसे पहला या अगला महिना था ।) 10. पुष्य-पौष (पूस या फूस) 11. मघा-माघ 12. फाल्गु-फाल्गुण
काल-संकेतों में कभी-कभी 'योगों' का उल्लेख भी मिलता है। 'योग' सूर्य और चन्द्रमा की गति की ज्योतिष्कीय संगति को कहा जाता है। ऐसे योग ज्योतिष के अनुसार 27 होते हैं। इन्हें भी नाम दिया गया है। अतः नाम से 27 योग ये हैं---1. विष्कंभ, 2. प्रीति, 3. आयुष्मत, 4. सौभाग्य, 5. शोमन, 6. अतिगंड 7. सुकर्मन, 8. धृति, 9. शूल, 10. गण्ड, 11. वृद्धि, 12. ध्र व, 13. व्याधात, 14. हर्षण, 15. बज्र, 16. सिद्धि या अस्त्रज, 17. व्यतीपात, 18. वरीयस, 19. परिधि, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शुभ, 24. शुक्ल, 25. ब्रह्वन्, 26. ऐन्द्र तथा 27. वैघति ।
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