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काल निर्धारण/ 273
संगत तिथि के अनुसन्धान के आधार का निर्णय करने या कराने की योग्यता भी होनी चाहिये । वैसे आधुनिक ज्योतिषी एल० डी० स्वामीकन्नुपिल्ले की 'इण्डियन ऐफिमेरीज' से भी सहायता ली जा सकती है । शब्द में काल-संख्या
___ यह भी हम पहले देख चुके हैं कि भारत में शब्दों में अंकों को लिखने की प्रणाली रही है । इस प्रणाली से भी काल-निर्णय में कठिनाइयाँ खड़ी हो जाती हैं। यह कठिनाई तब पैदा होती है जब जो शब्द अंक के लिए दिया गया है उससे दो-दो संख्याएँ प्राप्त होती हैं : जैसे सागर या समुद्र से दो संख्याएँ मिलती हैं, 4 भी और 7 भी। एक तो कठिनाई यही है कि सागर शब्द से 4 का अंक लिया जाय या 7 का । पर कभी कवि दोनों को ग्रहण करता है, जैसे----
'अष्ट-सागर-पयोनिधि-चन्द्र' यह जगदुर्लभ की कृति उद्धव चमत्कार का रचना-काल है। इसमें 'सागर' भी है और इसी का पर्याय 'पयोनिधि' है । क्या दोनों स्थानों के अंक 4-4 समझे जायें, या 7-7 माने जायें या किसी एक का 4 और दूसरे का 7, इस प्रकार इतने संवत् बन सकते हैं :
1448 1778 1748
1478 'नेत्र सम युग चन्द्र' से होगा 1 + 2 = युग, = 3, पुन: 3 (नेत्र)। इसमें युग को '4' भी माना जा सकता है और नेत्र को '2' भी।
__ वस्तुतः ऐसे दो या तीन अंक बतलाने वाले शब्दों में व्यक्त संवत् को ठीक-ठीक निकालने में अलंध्य कठिनाई भी हो सकती है। तभी उक्त सन्दर्भ से डी० सी० सरकार ने यह टिप्पणी की है
"Indeed it would have been difficult to determine the date of the composition of the work, inspite of the years in both the eras being quoted".
उक्त पुस्तक में ये संवत् अंकों में भी साथ-साथ दिये गये है, अतः कठिनाई हल हो जाती है। किन्तु यदि अंकों में संवत् न होता तो उसे तिथि और दिन और पक्ष (शुक्ल या कृष्ण) तथा महीने के साथ पंचांगों में या 'इण्डियन एफीमेरीज' से निकाला जा सकता था।
अंक जब शब्दों में दिये जाते हैं, या अन्यथा भी, भारतीय लेखन में, 'अंकाना वामतो गतिः' की प्रणाली अपनायी जाती रही है अर्थात् अंक उलटे लिखे जाते हैं, मानो लिखना है '1233' तो 3 3 2 1' लिखा जाएगा और शब्दों में 'नेत्र राम पक्ष चन्द्र'-(नेत्र) 3, (राम) 3, (पक्ष) 2, (चन्द्र) 1, जैसे रूप में लिखा जाएगा किन्तु यह देखा गया है कि इस पद्धति का अनुकरण भी बहुधा नहीं किया गया है। कितनी ही पुष्पिकानों (Calophones)
- 1.
Sircar D.C.-Indian Epigraphy, p. 229.
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