________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काल निर्धारण/279
डी. सी. सरकार का विवरण लिया है। इसमें भौमकार वंश सम्वत् 198 के साथ यह विवरण भी दिया है : विषुव-संक्रान्ति, रविवार, पंचमी, मगशिरा नक्षत्र । अब इस सबकी पंचांग में खोज करने पर उस काल में 23 मार्च, 1029 ई० को ही उक्त तिथि बैठती है। इस गणना से भौमकर-सम्वत् 831 ई० से प्रारम्भ हुआ ।
टिप्पणियाँ उसमें और इसमें 11 वर्ष का अन्तर है। यह अन्तिम ज्योतिषीय प्रमाण अधिक अकाट्य लगता है, क्योंकि जो विवरण तिथि का लेख में है उस विवरण की तिथि एक-एक शताब्दी में दो-चार ही हो सकती है, अतः यह निष्कर्ष प्रामाणिक माना जा सकता है ।
इस एक उदाहरण से विस्तारपूर्वक हमने उस पद्धति का दिग्दर्शन कराने का प्रयत्न किया है, जिससे अज्ञात तक पहुँचने के प्रयत्न किये जाते हैं। ये समस्त प्रयत्न अन्तिम को छोड़कर बाह्य साक्ष्यों और प्रमाणों पर ही निर्भर करते हैं।
अब हमें यह देखना है कि जहाँ किसी भी प्रकार के सन्-सम्वत् का उल्लेख न हो वहाँ काल-निर्णय या निर्धारण की पद्धति क्या अपनायी जाती है । साक्ष्य : बाह्य अन्तरंग
ऐसे लेखपत्र या ग्रन्थ का काल-निर्णय करने में जिन बातों का आश्रय लेना पड़ता है उनमें से कुछ ये हैं : 1. बाह्य साक्ष्य :
क-बाह्य उल्लेख-अन्य कवियों द्वारा उल्लेख ख-अनुश्रुतियों-कवि-विषयक लोक-प्रचलित अनुश्रुतियाँ ग-ऐतिहासिक घटनाएँ घ-सामाजिक परिस्थितियाँ
ङ-सांस्कृतिक-उपादान 2. अन्तरंग साक्ष्य :
क-अन्तरंग साक्ष्य का स्थूल पक्ष 1. लिपि 2. कागज-लिप्यासन 3. स्याही 4. लेखन-पद्धति 5. अलंकरण 6. अन्य ख-अन्तरंग साक्ष्य : सूक्ष्म पक्ष 1. विषयवस्तु से 2. ग्रन्थ में आये उल्लेखों में
For Private and Personal Use Only