Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

View full book text
Previous | Next

Page 311
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल निर्धारण/277 डी. सी. सरकार का विवरण टिप्पणियां रूपों तथा लेखन-वैशिष्ट्यों के आधार पर काल-निर्धारण में सहायक होता है.---जब कोई अन्य साधन न हो तो इसे आधार माना जा सकता है । 3. फिर सरकार ने सिल्वियन लेवी का 3. उसमें सरकार ने उन साक्षियों का सुझाव दिया है कि चीनी स्रोतों में उल्लेख किया है, जो विदेश से मिली जिस महायानी बौद्ध राजा का नाम हैं, और समसामयिक है। मिलता है, जो बु-चन (ोड़-उडीसा) चीनी में भारतीय भीमकारों के का राजा था और जिसने स्वहस्ताक्षर- किसी राजा के नाम जो अर्थ दिया है, युक्त एक पांडुलिपि चीनी सम्राट को उससे एक विद्वान् ने एक राजा के, 795 ई० में भिजवाई थी, वह भौम- दूसरे ने दूसरे के नाम को तद्वत् स्वीकार कार वंश का राजा शुभाकर प्रथम था। किया है। चीनी में इस राजा के नाम का अनुवाद चीनी में इस घटना का सन् दिया यों दिया है : भाग्यशाली सम्राट, जो हमा है, जिससे ई० सन हमें विदित हो वही करता है जो सुकृत्य है, सिंह, इस जाता है और उक्त रूप में काल-निर्णय चीनी विवरण के आधार पर लेवी ने सम्भव हो जाता है। शुभाकर प्रथम को वह राजा माना है और इसका मूल नाम शुभकरसिंह (या केसरिन) होगा, यह कल्पना की है। प्रार० सी० मजूमदार ने चीनी विवरण के आधार पर उक्त शुभाकर प्रथम के पिता को वह राजा माना है जिसने 795 ई० में पुस्तक भेजी थीइसका नाम था 'शिवकर प्रथम उन्मत्त सिंह। इन आधारों पर भीमकार-वंश के राज्य की दो शताब्दियां, 750-95) ई० या 775-975 ई० के बीच स्थिर होती हैं। 4. भांडारकर ने भी इनका काल-निर्णय . 4. सरकार ने भांडारकर की लिपि-पठन किया-इस आधार पर कि भीमकार- की भूल बताकर लिपि-विज्ञान के उस संवत् और 606 ई० वाले 'हर्ष संवत्' महत्त्व को और सिद्ध किया है, जिसमे को एक माना जाय । इस गणना से वह काल-निर्णय में सहायक होता है । भौमकार 606-806 ई० में हुए। सरकार की आलोचना है कि अभिलेख For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415