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274, पाण्डुलिपि - विज्ञान
में सन् संवत् सीधी गति से ही दे दिया गया है। इससे भी कठिनाई उपस्थित हो जाती है ।
यथा - संवत् 13 सैंतालीस समै माहा तीज सुद ताम || मखहीयो पोहता सरग हांथांपूरे हाम | 1
या
सतरं से पचानवें कोतुक उत्तम वास ।
वद पष प्राठमवार रवि कीनौ ग्रन्थ प्रगास || 2
या
संवत् सत्रह से वरष ता ऊपरि चौबीस || सुकल पुष्य कातिक विषै दसमी सुन रजनीस ||
या
संवत सहसँ गये वर्ष दशोत्तर श्रौर ।
भादव सुदि एकादशी गुरुवार सिर भौर ॥
या
संवत् सोलह सोलोतरं श्राषातीज दीवस मनषरं ।। जोड़ी जैसलमेर मंभार बाँच्या सुख पाने संसार ॥15
या
अष्टादस बत्तीस में । बदि दसमी मधुमास । करी दीन बिरदावली । या अनुरागी दास ॥
या
संमत पनरे से पीचौतरै पुनम फागुरण मास ॥ पंच सहेली वररणवी कवि छीहल परगास ॥ 7
या
यदि चैत साठ बरस तिथि चौदिसिगुरुवार । बंधे कवित्त सुवित्त परि कुंभल मेर मारि ॥
या
समत उगरणी और बतीसा || चौदह भादू दीत को बासा ॥
7. बही, पृ. 501 8. वही, पृ.53
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1. मेनारिया, मोतीलाल - राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज (प्रथम भाग ) १० 21
2. वही, पृ. 101
3. वही, पृ. 22
4. वही, पृ. 361
5. वही, पृ. 37
6. वही, पृ. 45।
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