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काल निर्धारण 269
संवतों और सनों का यह विवरण संक्षेप में दिया गया है। हस्तलेखों में विविध मंवतों और सनों का उपयोग मिलता है। उन संवतों के परिज्ञान से ऐतिहासिक कालक्रम में उन्हें बिठाने में सहायता मिलती है, इससे काल-निर्णय की समस्या का समाधान भी एक मीमा तक होता है। इस परिज्ञान की इतिहासकार को तो आवश्यकता है ही, पांडुलिपिविज्ञानार्थी के लिये भी है, और कुछ उससे अधिक ही है, क्योंकि यह परिज्ञान पांडुलिपिविज्ञानार्थी की प्रारम्भिक आवश्यकता है, जबकि इतिहासकार के लिये भी सामग्री प्रदान करने वाला यह विज्ञानार्थी ही है।
सन्-संवत् को निरपेक्ष कालक्रम (Absolute chronology) माना जाता है, फिर प्रत्येक सन या संवत अपने ग्राप में एक अलग इकाई की तरह राज्य-काल-गणना की तरह काल-क्रम को ठीक विठाने में अपने आप में सक्षम नहीं है । अशोक के राज्यारोहण के पाठवें या बारहवें वर्ष का ऐतिहासिक कालक्रम में क्या महत्त्व या अर्थ है। मान लीजिये अशोक कोई राजा 'क' है, जिसके सम्बन्ध में हमें यह ज्ञात ही नहीं कि वह कब गद्दी पर बैठा । इस 'क' के राज्य वर्ष का ठीक ऐतिहासिक काल-निर्धारण तभी सम्भव है जब हमें किसी प्रकार की अपनी परिचित काल-क्रम की शृंखला, जैसे ई० सन् या वि० सं० में 'क' के राज्यारोहण का वर्ष विदित हो, अतः किसी अन्य साधन से अशोक का ऐतिहासिक काल-निर्धारण करना होगा । जैसा कि हम पहले देख नुके हैं, अशोक ने तेरहवें शिलालेख में समसामयिक कुछ विदेशी राजाओं के नाम लिये हैं जैसे-यूनानी राजा आंतिप्रोकस द्वितीय का उल्लेख है और उत्तरी अफ्रीका के शासक द्वितीय टालेमी का भी है। टालेमी का शासन-काल ई० पू० 288-47 था । डॉ. वासुदेव उपाध्याय ने बताया है कि 'इस तिथि 282 में से 12 वर्ष (अभिषेक के 8वें वर्ष में तेरहवाँ लेख खोदा गया तथा अशोक अपने अभिषेक से चार वर्ष पूर्व सिंहासनारूढ़ हुया था) घटा देने में ई०पू० 270 वर्ष अशोक के शासक होने की तिथि निश्चित हो जाती है। अतः अशोक 'क' के समकालीन 'ख', 'ग' की निर्धारित तिथि के आधार पर 'क' के राज्यारोहण की तिथि निर्धारित की जा सकी।
इसी प्रकार विविध संवतों में भी परस्पर के सम्बन्ध का सूत्र जहाँ उपलब्ध हो जायगा वहाँ एक को दूसरे में परिणा करके परिचित या ख्यात कालक्रम-शृंखला बैठाकर सार्थक काल-निर्णय किया जा सकता है।
यथा 'लक्ष्मणसेन संवत्' के निर्धारण में ऐसे उल्लेखों में सहायता मिलती है जैसे 'स्मृति तत्वामृत' तथा 'नरपतिजय चयां टीका' नामक हस्तलिखित ग्रन्थों में मिले हैं । पहली में पुष्पिका में ल० सं० 505 शाके 1546' और दूसरी में 'शाके 1536 ल'
उपाध्याय, वासुदेव (डॉ.) प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, पृ. 210 सी. एम. डफ ने 'द क्रोनोलाजी आप इंडियन हिस्ट्री' में इस सम्बन्ध में यों लिखा है :-Among hi, Contemporaries were Antioth:s ll of Syria (B. C. 260-247), Ptolemy PhiladeIphos (285-247), Antigonos gonatos of Makedomia (278-242), Magas of kyrene (d. 258), and Alexander of eperios (between 262 and 258), who have been identified with the kings mentioned in his thirteenth edict, Senart has come to somewhat different conclusions regarding Asoka's initial date Faking the synchronism of the greek kings as the basis of his calculation, he fixes. Asoka's accession in B.C. 273 and His coronation in 269..
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