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228 / पाण्डुलिपि - विज्ञान
प्रति के सम्बन्ध में कैसे बनाई है, यह उन्होंने नहीं लिखा है । किन्तु इस प्रकार की धारणा के दो कारण सम्भव प्रतीत होते हैं, एक तो यह कि इसमें वर्तनी - विषयक कुछ ऐसी विशिष्ट प्रवृत्तियाँ मिलती हैं जिनके कारण शब्दावली और भाषा का रूप विकृत हु लगता है, दूसरे यह कि इसका पाठ अनेक स्थलों पर अपनी सुरक्षित प्राचीनता के कारण दुर्बोध हो गया है, और उन स्थलों पर अन्य प्रतियों में बाद का प्रक्षिप्त किन्तु, सुबोध पाठ मिलता है । कहीं-कहीं पर ये दोनों कारण एकसाथ इकट्ठा होकर पाठक को और भी अधिक उलझा देते हैं
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* वर्तनी सम्बन्धी इसकी सबसे अधिक उलझन में डालने वाली प्रवृत्तियाँ प्रावश्यके
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उदाहरणों के साथ निम्नलिखित हैं
কা
(1) इसमें 'इ' की मात्रा का अपना सामान्य प्रयोग तो है ही, 'अ' के लिए भी उसका प्रयोग प्रायः हुआ है, यथा :
गुन तेज प्रताप ति रिण 'कहि दिन पंच प्रजेत न ग्रन्त लहइ
ब्रह्म वेद नहि चषि अॅलप युधिष्ठिर 'बोल' । जु शायर (सायर) जल 'तजि' मेरे मरजादहं डोलई रहि गय उर झषेव उरह मि (मइ) प्रवरे न बुझइ । उन जीवइ कोई मोहि परमपर 'भूमि' । किरणाटी राणो किं (कइ) श्रावासि राजा विदा मांगन ग 'पछि' (पछई) राजा परमारि प्रावासि विदा मांगन गयु ! *पछि' (पछइ) राजा परमारि सुषुली विंदा भोगने ग T 'पछि' (es) राजा वांधेली के प्रवास विदा मांगन गये तुलना कीजिये
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"पछई राजा कछवाही कई आवासि विदा मांगन गयु (मो० 125 अ PK VIE मनु प्रकाले टडीओ शंघन 'पवि' (पव्वेइ) छुटि प्रवाह (#10234-2) 'तिनं' 'मि' (मई) दसि' 'सि' (सइ) और दलन 'उप्परि' (उप्पारइ) गॅर्ज दंत ।" THIS 18: PEE NF THE तिन मि' (मई) कवि' पंजे सिंह (सहि) भाषै भाप 'विठडे काज 'विनै मिं* (मह) दिवंगत देव॒ने सम॑ह॒ तिने महि पुहु प्रथीराजे ।
" (मो० 438-2) TE-OFFEE
जे कल साधे मनें 'मि' (मई) भई सबै ईछा रस दोन्ह 'असमि' (असमैइ) सौइ मग्यु सुकवि नृपति 'विचार' (विचारई) संब
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मो० 122
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(2) 'इ' की मात्रा का प्रयोग पुनः 'ऐ' के लिए भी हुआ 123 124 तथा 125 के उद्धरणों में
राजा भटियानी प्रावामि विदा माँगन गये ।
'कीजिए
דין
(मो. 95tsite 95 51-52)
(मो० 5302)
"इस प्रवृत्ति की पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि कहीं-कहीं "की मात्रा को "ई" के रूप में पढ़ा गया Mohit Shah his pin whi हैं
जीपी
"तम 'सरबंगई (संवर्ग) से काँवराज राज गुरू सम ।
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(मो० 2243-4 ) Pot S
545-3-4) (मौ122) (मो० 123 अ) (मौ० 124 अ
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(to 439)
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(मो० 4023)
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मिलती हैं, "यथा : ऊपर
आए
हुए 'क' की तुलना
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(मो० 127)