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गलत छपा है यह 'तिथि' है । 'तीरोदसी' त्रयोदशी का रूप से दृष्टव्य है वह यह है कि इसमें संवत् 1791 गया है । एक पुष्पिका इस प्रकार है :
काल निर्धारण / 259
विकृत रूप है । किन्तु जो विशेष दिया गया है और सन् 1145 दिया
"सन बारह से ग्रसी हैं, संवत देह बताय बोन इस से बोनतीस में सो लिखि कहे उ बुझाय ||
यहाँ कवि ने सन् बताया 1280 और उसका संवत् भी बताया है : 1929 | संवत् तो विक्रमी है, सन् है फसली । ऊपर भी सन् से फसली सन् ही अभिप्रेत है ।
जायसी के उल्खों को लीजिये । वे 'ग्राखिरी कलाम' में लिखते हैं
"मा अवतार मोर नव सदी तीस बरिख कवि ऊपर बदी ।" X X X सन् नव से सैंतालिस अहै । कथा आरम्भ बैन कवि कहै
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1.
जायसी ने सन् का उल्लेख किया है । यह सन् है हिजरी तो स्पष्ट है कि हिन्दी रचनाओं में हिजरी सन् का भी उल्लेख है और 'फसली' सन् का भी ।
भारत के अभिलेखों और ग्रन्थों में दो या तीन संवत् या सन् ही ही संवतों -सनों का उल्लेख हुआ है । इसलिए उन्हें अपने प्रचलित ईस्वी नियमित संवतों में उन्हें बिठाने में कठिनाई होती है ।
विविध सन्-संवत्
वर्ष में लिखा गया था । लेखों में 'वीर संवत्' का
हम यहाँ पहले उन संवतों का विवरण दे रहे हैं जो हमें भारत में शिलालेखों और अभिलेखों में मिले हैं। यह हम देख चुके हैं कि पहले बडली के शिलालेख में 'वीर संवत्' का उपयोग हुआ । यह शिलालेख महावीर के निर्वारण से 84वें इस एक अपवाद को छोड़ कर बाद में शिलालेखों और अन्य उपयोग नहीं हुआ, हाँ, जैन ग्रन्थों में इसका उपयोग आगे चलकर हुआ है । फिर अशोक के शिलालेखों में और आगे राज्य-वर्ष का उल्लेख हुआ है । नियमित संवत्
नहीं आये, कितने सन् और विक्रमी
सबसे पहले जो नियमित संवत् प्रभिलेखों के उपयोग में आया वह वस्तुतः 'शक
संवत्' था ।
शक संवत्
शक संवत् अपने 500वें वर्ष तक प्रायः बिना 'शक' शब्द के मात्र 'वर्षे' या कभीकभी मात्र 'संवत्सरे' शब्द से अभिहित किया जाता रहा ।
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roresai darfie विवरण, १० 124 1
जायसी लिखित 'पद्मावत' के रचनाकाल के सम्बन्ध में भी मतभेद हैं, पाट-भेद से कोई इसे 'सन् नव से सताइस आहे' मानते हैं, विद्वानों में इसका अच्छा विवाद रहा है ।