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काल निधारण/249
अशोक के काल से पूर्व का लिखा जो एक शिलालेख अजमेर के बडली ग्राम में मिला उसमें 'वीराय भगवत' पहली पंक्ति है और दूसरी पंक्ति 'चतुराशि बसे' है, जिसका अर्थ हुआ कि महावीर स्वामी के निर्वाण के 84वें वर्ष में । अब 84वें वर्ष का उल्लेख तो ऐसी घटना की ओर संकेत करता है जो एक प्रसिद्ध महापुरुष से जुड़ी हुई है, जिसके सम्बन्ध में उनके धर्म के अनुयायी जैन धर्मावलम्बियों ने निर्धान्त रूप से 'महावीर संवत्' या 'वीर निर्वाण संवत्' की गणना सुरक्षित रखो है । जैन लेखक अपने ग्रन्थों में निर्वाण संवत् का उल्लेख करते रहे हैं। श्वेताम्बर जैन मेरुतुङ्ग सूरि ने 'विचार थेणी' में बताया है कि 'महावीर संवत्' और विक्रम सं० में 470 वर्षों का अन्तर पाता है। इस गणना से महावीर संवत् का प्रारम्भ 527 ई० पू० में हुअा, क्योंकि विक्रम संवत का प्रारम्भ 57 ई० पू० में होता है और 470 वर्ष का अन्तर होने से 57+47)= 527 ई० पू० महावीर का निर्वाण संवत् हुआ । इस विधि से 3 संतों का पारस्परिक समन्वय हमें प्राप्त हो जाता है। विक्रम संवत् का 'वीर निर्धारण संवत्' से और दोनों का परस्पर 'ई० सन्' से। यदि 'वीर निर्वाण' के वर्ष का ज्ञान संदिग्ध हो तो इस प्रकार का 'काल-संकेत' किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकेगा । यह स्थिति किसी छोटे और अज्ञात राजा के राज्यारोहण काल की हो सकती है क्योंकि उसे जानने के कोई पक्के प्रमारण हमारे पास नहीं हैं, वही स्थिति कुछ ऐसे कम प्रचलित अन्य संवतों के सम्बन्ध में भी हो सकती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि. किसी एक राजा के राज्यारोहण के सन्दर्भ से काल के संकेत से अधिक उपयोगी कालनिर्धारण की दृष्टि से नियमित संवत् का उल्लेख होता है। यों मूलतः यह नियमित संवत् भी किसी घटना से सम्बद्ध रहता है, हम देख चुके हैं कि 'शक संवत्' शक नृपति के राज्यारोहण के काल का संकेत करता है, 'वीर संवत्' का सम्बन्ध महावीर 'निर्वाण से है किन्तु 'गक संवत्' नियमित हो गया क्योंकि यह सर्वजन मान्य हो गया है ।
ऊपर काल-निर्धारण विषयक दो पद्धतियों का उल्लेख किया गया है--- (1) राज्यारोहण के काल के आधार पर, तथा (2) नियमित संवत् के उल्लेख से ।1 किन्तु ऐसे लेख भी हो सकते हैं जिनमें न राज्यारोहण से बर्ष की गणना दी गई हो, न नियमित संवत् का ही उल्लेख हो । ऐसी दशा में लेखों में संभित समकालीन राजाओं का व्यक्तियों के आधार पर कला-निर्धारण किया जाता है, यथा-अशोक के तेरहवें शिलालेख में अनेक समकालीन विदेशी शासकों के नाम आये हैं। यदि उनकी तिथियाँ प्राप्त हों तो अशोक की तिथि पाई जा सकती है । यूनानी राजा अंतियोकास द्वितीय का उल्लेख है। इनको तिथि ज्ञात है । ये ई० पू०261-46 तक पश्चिमी एशिया के शासक थे। द्वितीय टॉलमी का भी उल्लेख है जो उत्तरी अफ्रीका में ई० पू० 232-40 तक शासक था। इन समकालीन शासकों को तिथियों के आधार पर अशोक के राज्यारोहण का वर्ष ई० पू० 270 निकाला गया है।
नियम संवत् का उल्लेख कुषाण नरेशों के समय से मिलता है। आरम्भ के संवत् बयों में संवत् का नाम नहीं दिया गया, पर यह निर्धारित हो चुका है कि यह शक संवत्त है जो 78 ई० से आरम्भ हुआ। इससे आगे द्वितीय चन्द्रगुप्त के समय से गप्तों के लेखों में जो धो का निदेश है वह मी राज्य-वर्ष का न होकर गुप्त-संवत के वर्ष का है। यथा--- मानगुप्त का एरण स्तम्म का लेख, इसमें 191वें वर्ष का उल्लेख किया गया है, यह 191वां गुप्त संवत् है।
हर्षवर्धन की तिथियाँ 'हर्ष-संवत' की सूचक हैं । नेपाल के लेखों में भी हर्ष-संवत् है।
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