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226/पाण्डुलिपि - विज्ञान
या मूल पाठ निर्धारित किया जाता है । 1
यहाँ से वैज्ञानिक पाठालोचन का आरम्भ माना जा सकता है । प्राज पाठालोचन एक अलग विज्ञान का रूप ग्रहण कर रहा है । यह भी हुआ है कि पाठालोचन को भाषाविज्ञान या भाषिकी का एक अंग माना जाने लगा है, साहित्य का नहीं, जैसाकि इससे पहले
माना जाता था ।
पाठालोचन अथवा पाठानुसंधान की प्रक्रिया :
(क) ग्रन्थ संग्रह :
किसी एक ग्रन्थ का पाठालोचन करने के लिए यह अपेक्षित है कि पहले उस ग्रन्थ की प्रकाशित तथा हस्तलेख में प्राप्त प्रतियां एकत्र करली जायें। इसके लिए पहले तो उनके प्राप्ति स्थलों का ज्ञान करना होगा | कहाँ कहाँ इस ग्रन्थ की प्रतियाँ उपलब्ध हैं । यह कोई साधारण कार्य नहीं है । सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए लिखा-पढ़ी से, मित्रों के द्वारा, यात्रा करके, सरकारी माध्यम से एक जाल-सा बिछा लेना होगा । पं० जवाहरलाल चतुर्वेदी ने 'सूरसागर' विषयक सामग्री का जो लेखा-जोखा दिया है, उसे पढ़कर इसकी गरिमा को समझा जा सकता है । 2
ऐसी सूचना के साथ- साथ ही उन ग्रन्थों को प्राप्त करने के भी यत्न करने होंगे । कहीं से ये ग्रन्थ आपको उधार मिल जायेंगे, जिनसे काम लेकर आप लौटा सकेंगे । कहीं से इन ग्रन्थों की किसी सुलेखक से प्रतिलिपि करानी पड़ेगी, कहीं से इनके फोटो - चित्र तथा माइक्रोफिल्म मँगानी होंगी। इस प्रकार ग्रन्थों का संग्रह किया जायगा ।
(ख) तुलना :
अब इन ग्रन्थों के पाठ की पारस्परिक तुलना करनी होगी। इसके लिए
(1) पहले इन्हें कालक्रमानुसार सजा लेना होगा, तथा (2) प्रत्येक ग्रन्थ को एक संकेत नाम देना होगा ।
1. The chief task in dealing with several MSS of the same work is to investigate their mutual relations, especially in the matter of mistakes in which they agree and to construct a geneological table, to establish the text of the archetype, or original, from which they are derived.
— The New Universal Encyclopaedia (Vol. 10), p. 5499. किन्तु यह वंशवृक्ष (geneological table) प्रस्तुत करना बहुत कठिन कार्य है और कभी-कभी तो असम्भव हो जाता है। इसके लिए टेसीटरी महोदय का यह कथन पठनीय है। वे 'वर्धनिका' का पाठ - निर्धारण करते समय लिखते हैं
"I have tried hord to trace the pedigree of each of these thirteen MSS and ascertain the degree of their depending on the archetype and one another and have been unsuccessful. The reason of the failure is to be sought partly in the great number of MSS in existence and partly in the peculiar conditions under which bardic works are handed down, subject to every sort of alterations by the copyists who generally are bards themselves and often think themselves authorized to modify or, as they would say, improve any text they copy, to suit their tastes or ignorance as the case may be".
- टेसीटरी — वचनिका (भूमिका), पृ० 9. यह एक दृष्टि से अत्यन्त विशिष्ट स्थिति है, जिसमें इतनी अधिक प्रतियों के उपलब्ध होने के कारण भी वंशवृक्ष बनाने में सफलता नहीं मिल सकी।
2.
चतुर्वेदी, जवाहर लाल - पोद्दार अभिनन्दन ग्रंथ, पृ० 119-132
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