________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
244/पाण्डुलिपि-विज्ञान
इन समस्त कसौटियों से अधिक प्रामाणिक कसौटी है सभी मूल कहानिया की भाषा और मुहावरे का साम्य । स्पष्ट है कि तब तक इतने संस्करणों में भाषा-साम्य नहीं हो सकता, जब तक कि वे किसी एक मुल से प्रतिलिपि मूल संस्करण से प्रतिलिपि रूप में प्रस्तुत न किये गये हों।।
इन कसौटियों से यह तो सिद्ध हो जाता है कि एक मूल ग्रन्थ अवश्य था।
यह भी है कि.... (1) जो बातें सभी संस्करणों या ग्रन्थों में ममान हैं, वे मूल में होनी चाहिये।
(2) यदि कुछ बातें किन्हीं एक दो पुस्तकों में छुट भी हों तो, उनका कोई महत्त्व नहीं।
(3) कुछ अत्यन्त भूक्ष्म बातें यदि स्वतन्त्र संस्करणों की अपेक्षाकृत कम संख्या में ममान रूप से मिलती हों, तब भी उन्हें अनिवार्यतः मूल का नहीं माना जा सकता।
(4) कुछ स्वतन्त्र संस्करणों में यदि अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण बातें समान रूप से मिलती है तो यह अधिक सम्भावना है कि वे मूल से ही पायी हैं। इनके सम्बन्ध में यह धारणा समीचीन नहीं मानी जा सकती कि इनका समावेश यों ही स्वतन्त्र रूप से हो गया है, क्योंकि ये अन्य स्वतन्त्र संस्करणों में नहीं मिलती। वरन् यह मानना अधिक मंगत होगा कि ऐसी विशिष्ट महत्त्वपूर्ण बातें अन्यों में छोड़ दी गई हैं।
(5) यदि पूरी की पूरी कहानियाँ कितनी ही स्वतंत्र प्रतिया में समानरूपेण समाविष्ट मिलती हैं, और वे भी प्रायः सभी में एक ही जैसे स्थलों पर, तो वे भी मूल से पायी माननी होगी। यदि बड़ी कहानियाँ स्वतन्त्र रूप से कहीं किसी कहानी में जोड़ी गयी होंगी तो उसकी स्थिति बिल्कुल भिन्न होनी । प्रथम स्थिति में कहानी जहाँ स्वाभाविक रूप से अपने स्थान पर जुड़ी समीचीन प्रतीत होगी, वहाँ दूसरी स्थिति में वह थेगरी (Patch) जैसी लगेगी । एजरटन से ये कुछ प्रमुख बातें हमने यहाँ दी है । जो बातें पंचतंत्र के पाठ के पुननिर्माण के लिए दी गयी हैं, वे किसी भी ग्रन्थ के पुनर्निर्माण में, उस ग्रन्थ के रूप और विषय के अनुसार उचित संशोधन-पूर्वक उपयोग में लायी जा सकती हैं। पूर्व में दी गई पाठालोचन-प्रक्रिया भी ऐसे पाठालोचन में उपयोग में लानी ही पड़ेगी, क्योंकि एजरटन ने भी भाषा (Verbal) पक्ष को पूरा महत्त्व दिया है ।
पाठालोचन या पाठ की पुनर्रचना या पुनर्मािण में कुछ और पक्ष भी हैं, उन पक्षों के लिए ठोस-वैज्ञानिक-पद्धति स्थापित हो चुकी है। इनमें से कुछ का उल्लेख संक्षेप में डॉ० छोटे लाल शर्मा ने अपने निबन्ध 'हिन्दी-पाठ-शोधन विज्ञान' में संक्षेप में यों किया है :
_ "कवि विशेष की व्यक्तिगत भापा (Ideobet) को समझने-परखने के और भी तरीके हैं
(1) हर्डन की सांख्यिकीय पद्धति----हर्डन प्रयोगावृत्ति को शैली का प्रधान लक्षण स्वीकार करता है । उसका कहना है कि जब दो लेखकों में एक ही प्रकार की प्रयोगावृत्ति दीख पड़ती है तो उसकी शक्ति और क्षमता की पुष्टि की सम्भावना बढ़ जाती है। उसकी यह सहज स्वीकृति है कि भाषा में नियम और आकस्मिकता-दोनों ही तत्त्व काम करते हैं, यहाँ तक कि शब्दों के चुनाव में भी आकस्मिकता का आग्रह रहता है । यह आकस्मिकता समसामयिक लेखकों की तुलना के अनन्तर ग्रन्थ-विशेष की प्राकस्मिक प्रयोगावृत्ति से स्पष्ट होती है जो पाठ-शोध में ही नहीं रचनाओं के कालक्रमिक निर्णय एवं पाठ-प्रामाणिकता आदि में विशेष मफल एवं उपादेय सिद्ध होती है।
For Private and Personal Use Only