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पाठालोचन/241
किया जाता था । एक शीर्ष-रेखा से शब्द-शब्द को जोड़कर लिखा जाता था. यथा- ..
प्रागेचलेबहुरिरघुराई
ऋष्यमूकपर्वतनिय राई इस पद्धति का सम्पादक जो अधिक से अधिक कर सकता है वह यह है कि अपनी बुद्धि का उपयोग करके चरण-बन्ध को तोड़कर 'शब्द-बन्ध' से पांडुलिपि प्रस्तुत कर दे । यह शब्द 'बन्ध' वह अपने शब्दार्थ ज्ञान के आधार पर ही करता था। स्पष्ट है कि ऐसे सम्पादन का कोई वैज्ञानिक महत्त्व नहीं । पर किसी अच्छी प्रति का ऐसा पाठ भी प्रकाशित हो जाय तो यह महत्त्व तो उसका है ही कि एक अच्छा ग्रन्थ प्रकाश में पाया।
दूसरी पद्धति को पाठान्तर पद्धति कह सकते हैं। पाठ संशोधक एकाधिक ग्रन्थ एकत्र कर लेता है। उन ग्रन्थों में से सरसरे अध्ययन के उपरान्त जो अर्थ आदि की कसौटी पर ठीक प्रतीत हुआ, उसे मूल पाठ मान लिया और नीचे पाद टिप्पणियों में अन्य ग्रन्थों से पाठान्तर दे दिये । वैज्ञानिक पाठालोचन पाठान्तर देने का भी क्रम रहता, इस पद्धति में वैसा नहीं होता।
तीसरी पद्धति को भाषा-अादर्श पद्धति कह सकते हैं । इस पद्धति में जिस ग्रन्थ का सम्पादन करना है उसकी वर्तनी के रूपों का निर्धारण और व्याकरण विषयक नियमों का निर्धारण उस ग्रन्थ का अध्ययन करके और उस कृति की और उस काल की अन्य रचनाओं से तुलनापूर्वक कर लिया जाता है । इस प्रकार उस ग्रन्थ की भाषा का आदर्श रूप खड़ा कर लिया जाता है और उसी के आधार पर पाठ का संशोधन प्रस्तुत कर दिया जाता है ।
इन पद्धतियों का वैज्ञानिक पद्धति के समक्ष क्या मूल्य हो सकता है. सहज ही समझा जा सकता है। पाठ-निर्माण
पाठ का पुनर्निर्माण, वह भी प्रामाणिक निर्माण, भी पाठालोचन का ही एक पक्ष है। एजरटन महोदय ने पन्चतन्त्र के पाठ का पुनर्निर्माण किया था। पाठ-निर्माण में उनका कार्य श्रादर्श कार्य माना गया है।
एजरटन महोदय ने 'पंचतंत्र पुनर्निर्मिति' नामक ग्रन्थ में विविध क्षेत्रों से प्राप्त पंचतंत्र के विविध रूपों को लेकर उनमें पाये जाने वाले अन्तरों और भेदों को दृष्टि में रख कर उसके 'मूलरूप' का निर्माण करने का प्रयत्न किया। पंचतंत्र के विविध रूपान्तरों में कहानियों में पागम, लोप और विषयक मिलते हैं। प्रथम, प्रश्न यही उपस्थित होता है कि तब पंचतंत्र का मूलरूप क्या रहा होगा और उसमें कौन-कौनसी कहानियाँ थीं और वे किस क्रम में रही होंगी। यह माना जाता है कि विश्व में लोकप्रियता की दृष्टि से बाइबिल के बाद पंचतंत्र का स्थान है। इसी कारण पंचतंत्र के कितने ही संस्करण मिलते हैं। उनमें अन्तर है-अतः पंचतंत्र के मूलरूप का निर्माण करने की समस्या भी 'पाठालोचन' के अन्दर ही आती है।
इसके लिए एजरटन महोदय ने वंशवृक्ष बनाया । वह इस प्रकार है : वंशवृक्ष,
प्राचीनतर पंचतंत्र के संस्करणों के आन्तरिक सम्बन्ध दिखाने के लिए।
1. Edgerton, Franklin-The Panchatantra Reconstructed, Vol. II, p. 48.
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