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लिपि -समस्या / 201
पर पहचाना जा सकता है । येो लिपियाँ ब्राह्मी और खरोष्ठी हैं। चीनी विश्वकोष फा-वन-सु-लिय ( रचना - काल 668 ई० ) इस प्रसंग में हमारी सहायता करता है । इसके अनुसार लेखन का आविष्कार तीन देवी शक्तियों ने किया था, इनमें पहला देवता था फन (ब्रह्मा) जिसने ब्राह्मी लिपि का आविष्कार किया, जो बांये से दाँये लिखी जाती है, से दूसरी दैवी शक्ति थी किया-लू (खरोष्ठ) जिसने खरोष्ठी का श्राविष्कार किया, जो दाँये से बाँये लिखी जाती है, तीसरी और सबसे कम महत्त्पूर्ण दैवी शक्ति थी त्साम की ( Tsam -ki) जिसके द्वारा ग्राविष्कृत लिपि ऊपर से नीचे की प्रोर लिखी है । यही विश्व-कोष हमें आगे बताया है कि पहले दो देवता भारत में हुए थे और तीसरा चीन
उत्पन्न
में........ ।”
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सूक्ष्मता से विचार करने पर अधिकाँश लिपियाँ (ललितविस्तर में बतायी गयी ) निम्नलिखित वर्गों में विभाजित की जा सकती हैं; कुछ तो फिर भी ऐसी रह जाती हैं जिन्हें पहिचानना और परिभाषित करना कठिन ही है :
1.
भारत में सबसे अधिक प्रचलित लिपि ब्राह्मी । यह लिपि की प्रकारादिक (alphabetic) प्रणाली थी ।
3.
4.
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वह लेखन प्रणाली जो भारत के उत्तर-पश्चिम तक ही सीमित रही खरोष्ठी । इसमें कारादिक वर्णमाला तो ब्राह्मी के समान थी पर लिपि भिन्न रही ।
भारत में ज्ञात विदेशी लिपियां :
(क) यवनाली (यवनानी ) — यूनानी (ग्रीक) वाणिज्य व्यवसाय के माध्यम से भारत इससे परिचित था । यह भारत - बास्त्री और कुषारण सिक्कों पर भी अंकित मिलती है ।
(ख) दरदलिपि ( दरद लोगों की लिपि)
(ग) खस्या लिपि (खसों-शकों की लिपि)
(घ) चीना लिपि (चीनी लिपि)
(च) हूण लिपि ( हूरों की लिपि)
(छ) असुर लिपि (असुरों की लिपि, जो कि पश्चिम एशिया में प्रायों की शाखा
के ही थे ।)
(ज) उत्तर कुरुद्वीप लिपि (उत्तर कुरु, हिमालय, उत्तर के क्षेत्र की लिपि) (झ) सागर - लिपि (समुद्री क्षेत्रों की लिपि)
भारत की प्रादेशिक लिपियाँ: आधुनिक प्रादेशिक लिपियों की भाँति पूर्वकाल में ब्राह्मी के साथ-साथ ऐसी प्रादेशिक लिपियाँ भी रही होंगी जो या तो ब्राह्मी का ही रूपान्तर हों, या उससे ही विकसित या व्युत्पन्न हों या पुरा ब्राह्मी या तत्कालीन किसी अन्य स्वतन्त्र लिपि से व्युत्पन्न न हों । ब्राह्मी के रूपान्तरों को छोड़ कर उक सभी कालकवलित हो गयीं। फिर भी नीचे लिखे नामों में कुछ की स्मृति अवशिष्ट है :
(क) पुखरसारीय ( पुष्करसारीय) अधिक सम्भावना यह है कि यह पश्चिमी गांधार में प्रचलित रही हो। जिसकी राजधानी पुष्करावती थी ।
(ख) पहारइय (उत्तर पहाड़ी क्षेत्र की लिपि)
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