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पाठालोचन / 221
अव हस्तलेखागाराध्यक्ष या पांडुलिपि - विज्ञानवेत्ता इस प्राप्त प्रति का क्या करेगा ? यह स्पष्ट है कि इस ग्रंथ के पूरे वंशवृक्ष में प्रत्येक प्रति का महत्त्व है, क्योंकि प्रत्येक प्रति एक कड़ी का काम करती है ।
प्रक्षेप या क्षेपक
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ऊपर हमने प्रतिलिपिकार के प्रमाद से हुए पाठान्तरों का उल्लेख किया है और उनमें वर्तनी और शब्द भेदों की ही चर्चा की है । पर प्राचीन ग्रन्थों में प्रक्षेपों और छूटों के कारण भी विकार आता है :
प्राचीन ग्रंथों में 'प्रक्षेपों' का या 'क्षेपकों' का समावेश प्रचुर मात्रा में हो जाता है । कुछ काव्यों को एक नये नाम से पुकारा जाने लगा है। उन्हें आज 'विकसनशील' काव्य कहा जाने लगा है, यह बताने के लिए कि मूल रूप में छोटे काव्य को बाद के कवियों ने या पाठकों ने या कथावाचकों ने अपनी ओर से कुछ जोड़-जोड़ कर उस वाक्य को विशाल बना दिया है ।
'महाभारत' के विद्वान् अध्येता यह मानते हैं कि मूल रूप में यह काफी छोटा था । 'पृथ्वीराज रासो' के सम्बन्ध में भी यह झगड़ा है । उसके तीन संस्करण विद्वानों ढूंढ निकाले हैं, कुछ की धारणा है कि 'लघु' संस्करण मूल रहा होगा, बाद में उसमें अन्य बहुत-सी सामग्री जुड़ती गयी। इस प्रणाली से उसका आधुनिक वृहद् रूप खड़ा हुआ । हमारे यहाँ कुछ ग्रंथों का उपयोग 'कथा' कहने के लिए होता रहा है । तुलसी का 'रामचरित मानस' इसका एक उदाहररण है । कथाकार को कथा कहते समय कोई प्रसंग ऐसा विदित हुआ, जो और विस्तार चाहता है, तो उसने 'स्वयं' की रचना कर डाली और अपनी प्रति में उसे जोड़ दिया । मानस में 'गंगावतरण' का प्रसंग ऐसा ही प्रक्षेप या क्षेपक माना जाता है ।
प्रक्षिप्त या क्षेपक के कारण
इन प्रक्षेपों का पाँच कारणों से किसी काव्य में समावेश हो जाता है। ( 1 ) किसी कवि (अथवा कथाकार) द्वारा अपने उपयोग के लिए, ऐसे स्थलों को जोड़ देना, जो उसे उपयोगी प्रतीत होते हैं, यह उपयोगिता दो रूपों में हो सकती है :
(क) किसी विशेष प्रकरण को और अधिक पल्लवित करने के लिए, तथा(ख) कवि का अपना कोई स्वतन्त्र कृतित्व जो उसके पाठ्य-ग्रन्थ के किसी अंश से सम्बन्धित हो और जो उसे लगे कि मूल कवि की कृति में जुड़कर उसे प्रसन्नता प्रदान करेगा ।
(2) एक ही विषय के भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र कृतित्वों को किसी अन्य यथा-सन्दर्भ सम्पादित कर देना । कुछ कवि इस बात को स्वयं चुप बने रहते हैं । जैसे- 'गोयम' ने चतुर्भुजदास की 'मधुमालती' में अपने द्वारा किये परिवर्द्धन का उल्लेख कर दिया है । * गोयम या गोतम 'स्वयं' ऐसा उल्लेख
* 'नंददास' की अनेकार्थं मंजरी और 'यान' मंजरी में 'रामहरि' ने जो अंश कर दिया है । यथा, बीस ऊपरें एक सौ नंददास जू कीस और दोहरा म 55 अनेकार्थ ध्वनि मंजरी ।
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व्यक्ति द्वारा एक में लिख देते हैं, कुछ
जोड़ा है, उसका उल्लेख रामहरि को है जु नवीन