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220 / पाण्डुलिपि - विज्ञान
4:
3:
लिपिकार 'क'
1:
J
2
5:
2:
3
पहली पीढ़ी |
दूसरी पीढ़ी
तीसरी पीढ़ी
चौथी पीढ़ी
1
1
1
2
3
4 5
इस प्रकार वंश-वृक्ष बढ़ता जायगा । प्रत्येक पाठ में कुछ वैशिष्ट्य मिलेगा ही । यह वैशिष्टय ही प्रत्येक प्रति का निजी व्यक्तित्व है । यह तो प्रतिलिपि की सामान्य सृजन का निर्माण प्रक्रिया है ।
पाठालोचन की आवश्यकता
2
2: पहली शाखा दूसरी शाखा तीसरी शाखा
पाठालोचन की हमें आवश्यकता तब पड़ती है, जब हस्तलेखागार में एक प्रति उपलब्ध होती है, पर वह 'मूलपाठ' वाली नहीं - वह प्रतिलिपि है निम्नलिखित वर्ग की -
(4) 2-3-1-5-2
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अर्थात चौथी पीढ़ी की दूसरी शाखा की 3 प्रतियों में से पहली प्रति की पांचवी प्रति की दूसरी प्रति । इसे यहाँ दिए वंशवृक्ष से समझा जा सकता है।
मूलपाठ
3
मूलपाठ
2
लिपिकार 'ख'
प्रथम स्थानीय प्रतिलिपियाँ
1
2
2
( इनसे कोई प्रतिलिपि नहीं हुई)
3
3
तीसरी प्रति
पहली प्रति दूसरी प्रति
14
4
1
4
1
पांचवी प्रति
2
दूसरी प्रति
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लिपिकार 'ग'
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3
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4