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लिपि-समस्या 205
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गूढ़ लेख-ग्रह 9-अइउऋलएऐोऔ, नयन-2 दीर्घ, वसु 8-कखगघङ चछज, षडानन 6झयटठडढ, सागर 7-णतथदधनप, मुनि 7-फबभमयरल, ज्वलनांग 5-वशषसह, तुंकशृंगविसर्ग-अनुस्वार । इस कुञ्जी से लिखा गूढ़ लेख कहलाता है-"ग्रहनयनवसुसमेतं पडाननख्यानि सागरा मुनयः । ज्वलनांग तुंकशृंग दुलिखितं गूढ़ लेख्यामिदम् ।। यथावसु 1 = + ग्रह 1 नयन = आ = क + अ + आ = का
4 =म् --ग्रह 1 = म+ सागर 4 = द्+ ग्रह 6 = द + ए ज्वलनांग 1 = ब+ग्रह 1 =ब+अ
= कामदेव एव "प्रकारा अन्येऽपि द्रष्टव्याः"
इसी प्रकार अंक पल्लवी, शून्य पल्लवी और रेखा पल्लवी लिपियाँ भी होती थीं। ग्रंक पल्लवी में पहला अंक वर्ण का द्योतक, दूसरा उस वर्ग के अक्षर का और तीसरा मात्रा का द्योतक होता है । अपहला वर्ग है, सभी स्वर इसके अक्षर हैं। क, च, ट, त, प, य और श ये अन्य वर्ग हैं। इन वर्गों के अंक ये होंगे : 1 = अ वर्ग-स्वर वर्ग, 2 = क वर्ग, 3 = च वर्ग, 4 = ट वर्ग, 5 = त वर्ग, 6 = प वर्ग तथा 7 = यरलव एवं 8 = शषसह । अंक पल्लवी में लेख यों लिखा जायेगा212
651 537 7 41
का
शून्यांकों में हल्की और गहरी शून्य से लघु और गुरु का संकेत किया जाता है, इसी प्रकार रेखांकों में हल्की-गहरी और बड़ी-छोटी रेखाओं से संकेत बनाये जाते हैं।
कितनी ही प्राचीन ताड़पत्रीय और कागज पर लिखी प्रतियों में अक्षरात्मक अंक भी पाये जाते हैं, जैसे-रोमन-लिपि में १० (10) के लिए X, ५० (50) के लिए L, १०० (100) के लिए C अक्षरों का प्रयोग किया जाता है। जैसे दस, बीस, तीस प्रादि दशक संख्याओं के सूचक अक्षर लिखे जाते हैं, परन्तु शून्य के स्थान पर शून्य ही चलता है, जैसेल = 10, थ = 20, ला = 30, प्त = 40, 0 = 50, \ = 60, \ = 70,0 = 80,0 = 90, () 0 0 0 सु = 100, सू = 200, स्ता = 300, स्ति = 400, स्तो = 500, स्तं = 600, स्तः = 70)
0
0
0 ) 0 इत्यादि ।
हम देखते हैं कि इन संख्यात्रों क पोड़ी पंक्ति में न लिख कर ऊपर-नीचे खड़ी पंक्ति में लिखा जाता है। कुछ अंकों के स्थान पर दहाई में वे अंक ही अपने रूप में लिखे जाते हैं और कुछ के लिए अन्य अक्षर नियत हैं, यथा-ल = 11, ल = 12, ल = 13, परन्तु,
14 के लिए लुं लिखा जायेगा। इसी प्रकार लू = 15, ल = 16, लु = 17, ल = 18,
र्या ब्रा ल = 19 इत्यादि।
एक
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