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लिपि-समस्या/ 203
10. शैली-परक लिपियां :
(क) उत्क्षेप लिपि (ऊपर की ओर उभार कर (उछालकर) लिखी गयी लिपि) (ख) निक्षेप लिपि (नीचे की ओर बढ़ा कर लिखी गयी लिपि) (ग) विक्षेप लिपि (सब अोर से लंवित लिपि) (घ) प्रक्षेप लिपि (एक ओर विशेष संवद्धित लिपि) (च) मध्यक्षर विस्तार लिपि (वह लिपि जिसमें मध्य-अक्षर को विशेष सम्बद्धित
किया गया हो ।) 11. संक्रमण-स्थिति द्योतक लिपि :
विमिश्रित लिपि (चित्ररेखान्वित, अक्षर (Sylla bics) तथा वर्ण से विमिश्रित
लिपि)। 12. त्वरा लेखन :
___(क) अनुद्र त लिपि-शीघ्रगति से लिखने की लिपि या त्वरा लेखन की लिपि) 13. पुस्तकों के लिए विशिष्ट शैली :
शास्त्रावर्त (परिनिष्ठित कृतियों की लिपि) 14. हिसाबकिताब की विशिष्ट शैली :
(क) गणावर्त (गणित मिश्रित कोई लिपि) 15. दैवी या काल्पनिक :
(क) देवलिपि (देवताओं की लिपि) (ख) महोरग लिपि सर्पो (उरगों) की लिपि (ग) वायुमरु लिपि (हवाओं की लिपि) (घ) अन्तरिक्ष-देव लिपि (आकाश के देवताओं की लिपि)
दैवी या काल्पनिक लिपियों को छोड़ कर शेष भेद या रूप भारत के विविध भागों की लिपियों में, पड़ोसी देशों की लिपियों में, प्रादेशिक लिपियों में और अन्य चित्र-रेखा नन्वयी या प्रालंकारिक लेखन में कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं ।
इस लेखक ने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की लिपि को विमिश्रित लिपि माना है जिसमें संक्रमण सूचक चित्ररेखक (pictographs), भावचित्र रेखिक (ideographs) तथा ध्वनि- त्रिक (अक्षर) रूप मिलेजुले मिलते हैं ।
किन्तु अठारह लिपियों का उल्लेख कई प्रमाणों में मिलता है । इस सम्बन्ध में हम पुनः श्री बहुरा जी की टिप्पणी उद्धृत करते हैं : __ वर्णक समुच्चय में मध्यकालीन अट्ठारह लिपियों के नाम इस प्रकार हैं :
1. उड्डी (उड़िया), 2. कीरी, 3. चणक्की, 4. जक्खा (यक्ष लिपि), 5. जवणी (यावनी ग्रीक लिपि), 6. तुरक्की (तुर्की), 7. द्राविड़ी, 8. नडि, नागरी (ई०सं० की
1. Pandey, Rajbali-Indian Palaeography, P.25-28. 2. Ibid. P. 29.
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