________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लिपि-समस्या/211
(प्रा) भ्रामक (Confusing) दोनों वर्ग भी सम्मिलित है। अब यहाँ प्रमादी लेखन से क्या परिणाम होते हैं और क्या कठिनाइयो घड़ी होती हैं, उन्हें देखना है। पहले मात्राओं पर ध्यान जाता है :
(1) भाषा: 17 । का का का 7 की। का > की
2-(क) उ > अ
(ख) ओ > आ आ (क) मा ध सात्रा (
13) (ख) कामोदरी > कामादरी
कामादरी कामादरी
41504 दृष्टव्य है कि अनेक हस्तलिखित प्रतियों में दो मात्राएँ बंगाली लिपि की भांति लगी मिलती हैं। यह प्रवृत्ति 19वीं शताब्दी तक की प्रतियों में पाई जाती हैं । दोनों मात्राएं नं0 (1) में इष्टव्य हैं। यह प्रवृत्ति बीकानेर के 'दरबार पुस्तकालय' में सुरक्षित ग्रन्थों में विशेष मिली हैं। - 37 अ
ए ऐसे ए 4- ओ औ औ 7 ओ . )
प्रतीत होता है कि यह गुरुमुखी के प्रभाव का परिणाम है और यह प्रवृत्ति 18वीं शताब्दी और उससे आगे लिखे ग्रन्थों में अधिक मिलती है।
अब हम इन वर्गों में मिलने वाले वैशिष्ट्य को ले सकते हैं : (2) वर्ण: क> फ। ष>प। दृष्टव्य है कि राजस्थानी में 'ख' वर्ण 19वीं शताब्दी तक की प्रतियों
में नहीं पाया जाता । बदले में 'ष' ही पाया जाता है । इसके अपवाद ..
. ये हैं : 1. संस्कृत शब्द में 'ख' भी मिलता है, 2. ब्राह्मण प्रतिलिपि
कारों ने दोनों का प्रयोग किया है।
For Private and Personal Use Only