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लिपि-समस्या/199 पहिले के साथ 'पा' की मात्रा और दूसरे के साथ अनुस्वार लगा है उनमें से पहिला अक्षर 'दा' और दूसरा 'न' (दान) ही होगा । इस अनुमान के अनुसार 'द' और 'न' के पहिचाने जाने पर वर्णमाला सम्पूर्ण हो गई और देहली, इलाहाबाद, साँची, मथिया, रधिया, गिरनार प्रौली आदि के लेख सुगमतापूर्वक पढ़ लिए गये। इससे यह भी निश्चय हो गया कि उनकी भाषा, जो पहिले संस्कृत मान ली गई थी वह अनुमान ठीक न था, वरन उनकी भाषा उक्त स्थानों की प्रचलित देशी (प्राकृत) भाषा थी। इस प्रकार प्रिन्सेप आदि विद्वानों के उद्योग से ब्राह्मी अक्षरों के पढ़े जाने से पिछले समय के सब लेखों को पढ़ना सुगम हो गया क्योंकि भारतवर्ष की समस्त प्राचीन लिपियों का मूल यही ब्राह्मी लिपि है ।। ब्राह्मी वर्णमाला
जिस 'ब्राह्मी वर्णमाला' के उद्घाटन का रोचक इतिहास ऊपर दिया गया है, उसे पढ़ने में आज विशेष कठिनाई नहीं होती। प्रिंसेप आदि के प्रयत्नों ने वह वर्णमाला हमारे लिए हस्तामूलकवत कर दी है । वह वर्णमाला कैसी है, इसे बताने के लिए नीचे उसका पूरा रूप दे रहे हैं
अशोककालीन सामान्य ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला यह है
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1. भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ० 39-40 ।
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