________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
194/पाण्डुलिपि-विज्ञान
दूसरा विकल्प यह रहा कि पार्यों से पूर्व या 4000 ई० पू० यहाँ सुमेर लोग निवास करते थे और यह उन्हीं की लिपि है।
तीसरा विकल्प यह है कि इस क्षेत्र के निवासी आर्य या उन्हीं की एक शाखा के . 'असुर' थे । यह उन्हीं की भाषा और लिपि है ।
इन तीनों परिकल्पनाओं के आधार पर विविध भाषाओं की लिपियों की तुलना करते हुए उनके प्रमाणों से भी अपने-अपने मत की पुष्टि की गयी है।
अब जी. आर. हंटर महोदय ने 'द स्क्रिप्ट ऑव हड़प्पा एण्ड मोहनजोदड़ों एण्ड इट्स कनैक्शन विद अदर स्क्रिप्ट्स' में बताया है कि- "बहत-से चिह्न प्राचीन मिस्र की महान लिपि से उल्लेखनीय समता रखते हैं। सभी एन्थ्रोपो-मारफिक चिह्न मिस्री समता वाले हैं, और वे यथार्थतः ठीक उसी रूप के हैं
और यह रोचक बात है कि इन एन्थ्रोपो-मारफिक चिह्नों से दूर की भी समता रखने वाले चिह्न सुमेरियन या प्रोटो-एलामाइट लिपि में नहीं मिलते । दूसरी ओर हमारे बहुत-से चिह्न ऐसे हैं जो प्रोटो-एलामाइट और जेमदेत नस्न की पाटियों के चिह्नों से हू-ब-हू मिलते हैं, और जिनकी मिस्री मोरग्राफिक समकक्षता की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इससे कोई भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि यह मान्यता बलवती ठहरती है कि हमारी लिपि कुछ तो मिस्र से ली गयी है और कुछ मेसोपोटामिया से । किंबहुना, एक अच्छे अनुपात में ऐसे चिह्न भी हैं जो तीनों में समान हैं, जैसे-वृक्ष, मछली, चिड़िया आदि के चिह्न । किन्तु ऐसा होना सम-आकस्मिक (Concidental) है और अनिवार्य भी है, क्योंकि लिपि की प्रवृत्ति चित्रात्मक है।
फिर वे आगे कहते हैं कि प्रोटो-एलामाइट से और भी साम्य है अतः हमने मिस्री चिह्न ही उधार लिए हैं।
और आगे वे यह सुझाव भी प्रस्तुत करते हैं कि हो सकता है कि मिस्त्री, प्रोटोएलामाइट और सिन्धुघाटी की लिपियों की जनक या मूल एक चौथी ही भाषा-लिपि हो, जो इनसे पूर्ववर्ती हो।
अब ये सभी परिकल्पनाएँ (हाइपोथीसीस) ही हैं। अभी तक भी हम सिन्धुघाटी की लिपि पढ़ सके हों, ऐसा नहीं लगता । - अभी हाल में फिर प्रयत्न हुए हैं और फिनिश-दल तथा रूसी दल ने सिन्धु-लिपि और सिन्धु-भाषा को समझने का प्रयत्न किया है। कम्प्यूटर का भी उपयोग किया गया है और ये इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि यह द्रविडोन्मुख भाषा और तद्नुकूल लिपि है। साथ ही दो भारतीय विद्वानों ने भी नये प्रयत्न किये हैं। एक है श्री कृष्णराव, दूसरे हैं डॉ० फतेहसिंह । इन दोनों का ही मन्तव्य है कि सिंधुघाटी की लिपि ब्राह्मी का पूर्वरूप एवं भाषा वेदपूर्वी संस्कृत ही है । यूनीवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज की फैकल्टी प्रॉव अोरियण्टल स्टडोज के एफ. पार. अल्लचिन ने 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के एक अंक में एक पत्र में, जहाँ पाश्चात्य प्रयत्नों को रचनात्मक (constructive) प्रयत्न बताया है और भारतीय प्रयत्नों को अंतः प्रज्ञाजन्य (intuitive), अन्त में उसने लिखा है कि
1, Hunter, GR-The Script of Hadappa and Mohan Jodaro and its connection
with other Scrips, P. 45-47.
For Private and Personal Use Only