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176/पाण्डुलिपि-विज्ञान
'-'। इसके दोनों छोरों पर दो हाथ जो कुहनी से मुड़ ५, सकते हैं और छोर पर पांच अंगुलियाँ अर्थात् प्रस्तुत चित्र। धड़ को उसने दो रेखाओं से बने डमरू के रूप में समझा क्योंकि कमर पतली, वक्ष और उरु चौड़े धड़ । कभी-कभी धड़ को वर्गाकार या आयताकार भी बनाया। नीचे पैर Y और टांगें। इन्हें बनाने के लिए दो आड़ी खड़ी रेखाएँ //' और एक दिशा में मुड़े पैर की द्योतक दो पड़ी रेखाएँ'-' '-' । मानव के बिम्ब का रेखानुकृति ने यह रूप लिया :
(चित्र-1) यह रेखा-चित्र तो प्रक्रिया को समझाने के लिए है यह रेखांकन की प्रक्रिया है जिसमें चित्र बनाने वाले की कुशलता से रूप में भिन्नता आ सकती है पर जो भी रूप होगा, वह स्पष्टतः उस वस्तु का बिम्ब प्रस्तुत करेगा, यथा
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(चित्र-2) आदिम मानव के बनाये चित्र हैं । वर्गाकार छड़ दृष्टव्य है।
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(चित्र-3) चित्रलिपि में मनुष्य के विविध रेखांकन सिन्धुघाटी की मुहरों की छापों से
नीचे दिये गए हैं । ये वास्तविक लिपि-चिह्न हैं ।
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