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180/पाण्डुलिपि-विज्ञान
और दूसरा चरण है उससे संप्रेषण का काम लेना । इसे हम
2. बिब-लिपि का नाम दे सकते हैं।
इस चित्र से स्पष्ट है कि स्वस्तिक पूजा और छत्र-अर्पण के पूरे शान्तिमय भाव को प्रेषित करने के लिए, पूजा-भाव में पशुओं के मादर के समावेश की कथा को और पूजाविधान को हृदयंगम कराने के लिए चित्र-लेखक इस चित्र के द्वारा बिम्बों से संप्रेषित करना चाहता है । अतः यह लिपि का काम कर उठा है । यह लिपि ध्वनियों की नहीं, बिम्बों की है। छत्रधारी मनुष्य कितने ही हैं, अतः वे लघु प्राकृतियों में हैं।
'बिम्ब धीरे-धीरे रेखाकारों के रूप में परिवर्तित हो उठता है । तब हम इसे 3. रेखाकार चित्र-लिपि कह सकते हैं।
सहनर्तन, जम्बूद्वीप (पचमढ़ी)
आरोही नर्तक, कुप्पगल्लु
(बेलारी, रायचूर, द० भा० ) 4-तब, पागे बिम्ब-लिपि और रेखाचित्र-लिपि के संयोग से 'चित्रलिपि' प्रस्तुत
१.11.11
ऐरिजोना (अमेरिका) में प्राप्त चित्र लिपि, जो प्राचीनतम लिपियों में से एक है]
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