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164/पाण्डुलिपि-विज्ञान
पांडुलिपियाँ इतने प्रकार की मिलती हैं :-- (1) खुले पन्नों के रूप में । पत्राकार। (2) पोथी । कागज को बीच से मोड़कर बीच से सिली हुई। (3) गुटका । बीच से या ऊपर से (पुस्तक की भाँति) सिला हुआ। इसके पत्र अपेक्षा
कृत छोटे होते हैं । पन्नों का आकार प्रायः 6XA, इंच तक होता है। (4) पोथो । बीच से सिली हुई।
पोथी और पोथो में अन्तर है। पोथी के पन्ने अपेक्षाकृत आकार में छोटे और संख्या में कम होते हैं । पोथो में इससे विपरीत बात है। (5) पानावली । यह बहीनुमा होती है। लम्बाई अधिक और चौड़ाई कम । चौड़ाई
वाले सिरे से सिलाई की गई होती है। इसे बहीनुमा पोथी भी कभी-कभी कह दिया जाता है। (6) पोथियां । पुस्तक की भांति लम्बाई या चौड़ाई की ओर से सिला हुआ।
इसमें और पोथी में सिलाई का अन्तर है । पोथियाँ प्रायः संकलन ग्रन्थ होते हैं, अथवा अनेक रचनाओं को एकत्र कर लिया जाता है, बाद में उन सबको एक साथ बड़े ग्रन्थ के रूप में सिलवा लिया जाता है। इन सिले ग्रन्थों का लिपिकाल प्रायः भिन्न-भिन्न ही होता है।
कौनसा प्रकार कितना उपयोगी है, इसको समझने के लिए उसका उद्देश्य जानना जरूरी है।
ऊपर जो प्रकार बताये गये हैं, उन्हें वस्तुतः दो बड़े वर्गों में रखा जा सकता है । (क) ग्रन्थ प्रकार
(2) पत्रों के रूप में
. जिल्द के रूप में . 1-खुले पत्रों के रूप में
पोथो पोथी गुटका 2-बीच में छेद वाले डोरी-ग्रंथि युक्त 1-इनका प्रचलन सोलहवीं शताब्दी के उत्त
लम्बाई
लम्बाई-चौड़ाई रार्द्ध से विशेष हुआ लगता है । जैनों के
चौड़ाई में लम्बाई अतिरिक्त इसके पश्चात् जन-साधारण में
बराबर अपेक्षाकृत और अन्यत्र यही रूप विशेष प्रचलित
अधिक रहा । संख्या में सर्वाधिक यही मिलते हैं। इसका विशेष उद्देश्यविशेषताएं :
पोथी: 1-घरू (1) इनमें पृष्ठ-संख्या लगाने की पद्धति : 2-सम्प्रदाय-पीठ, मन्दिर (एक शब्द (क) बाय हाथ की पोर हाशिये में में धार्मिक संख्या विशेष) के लिए
सबसे ऊपर किन्तु 'श्री गणेश' 3-पीढ़ी के लिए सामूहिक रूप से
भाग से हटकर कुछ नीचे, तथा । भविष्य की पीढियों के लिए (ख) उसी पन्ने के द्वितीय भाग (पृष्ठ पोथी : ऊपर दी गयी बातों के अतिरिक्त
2) में दायें हाथ की अोर नीचे। (i) भेंटस्वरूप देने के लिए
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