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पाण्डुलिपियों के प्रकार/165
(2) नाम लिखने की पति :
(ii) बेचने के लिए (क) जहाँ पृष्ठ-संख्या लिखते थे उसके (iii) किसी के कहने पर दान में ठीक नीचे या ऊपर (सामान्यतः)
देने के लिए। किसी के कहने रचना के नाम का प्रथम अक्षर
पर लिखी गयी या बनायी (अपवादस्वरूप दो अक्षर भी)
गयी पोथी भी इसी वर्ग में लिखते थे। ऐसा साधारणतः
पायेगी। प्रथम पृष्ठ के बायें हाथ वाले (iv) अपने लिए। अंक के साथ ही किया जाता गुटका : उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त निम्नथा। दूसरे पृष्ठ के बायें हाशिये लिखित और: या दायें हाशिये में लिखी पृष्ठ- (i) पाठ के लिए संख्या के पास भी। यों रचना (ii) स्वाध्याय हेतु नाम हाशियों (केवल बायें ही) कुछ ऐसी प्रथा थी कि गुटके को
के बीच में भी लिखे मिलते हैं। सामान्यतः किसी को दिखाया या दिया (3) विशेष :
नहीं जाता था । किन्तु ऐसी वर्जना (क) एक पन्ने की संख्या एक ही उसी गुटके के लिए होती थी जिसमें
मानी जाती थी, आधुनिक धार्मिक भावना निहित होती थी, वैसे पुस्तकों में लिखी पृष्ठ-संख्या उसका खूब उपयोग होता था। की भाँति दो नहीं।
विशेष : इन सबमें गुटके के दोनों रूप विशेष (ख) पोथो, पोथी और गुटके में काम प्रचलित रहे।
पाने वाली पद्धति नीचे दी जा कारण : (1) सुविधा, (2) मजबूती एवं रही है।
(3) संक्षेप लघु आकार । फलतः सैकड़ों गुटके मिलते हैं। शेष दो रूप (पोथो एवं पोथी) भी मिलते
हैं, पर अपेक्षाकृत कम । विशेष उपयोगिता :
इन सब कारणों के अतिरिक्त इनकी कुछ और उपयोगिताएँ भी थीं, यथा1-राजस्थान के राजघराने में पठन-पाठन
के लिए, संग्रह के लिए। 2-राजपूत राजघराने से विशेष रूप से
सम्बन्धित चारण आदि जातियों में परम्परा सुरक्षित रखना और व्यवसाय
की प्रतिष्ठा के लिए। 3-भाटों में........दहेज में, गोद लेने पर, विशेष अवसर पर भेंट या प्रसन्नता के
प्रतीक के रूप में दिये जाने के लिए। 4-नाथों में 5-जनों में-तथा,
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