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162/पाण्डुलिपि-विज्ञान
अब यह कला प्राणवान हो चली थी और धर्म के क्षेत्र से भी बँधी हुई नहीं रही। सजावटी पुस्तकें
सजावटी चित्र-पुस्तकों को कई प्रकार से सजाया जा सकता है । एक तो ग्रंथ के प्रत्येक पृष्ठ पर चारों ओर के हाशियों को फूल-पत्तियों से या ज्यामितिक आकृतियों से या पशु-पक्षियों की प्राकृतियों से सजाया जा सकता है। दूसरा प्रकार यह हो सकता है कि प्रारम्भ में जहाँ पुष्पिका दी गयी हो या अध्याय का अन्त हुआ हो, वहाँ इस प्रकार का कोई सजावटी चित्र बना दिया जाय (जैसे राउलवेल में) । फूल पत्तियों वाला, अशोक चक्र जैसा तथा अनेक प्रकार के ज्यामितिक आकृतियों वाला अथवा पशु-पक्षियों वाला कोई चित्र बनाकर पृष्ठ को तथा पुस्तक को सजाया जा सकता है। पृष्ठों के मध्य में भी विशिष्ट प्रकार की प्राकृतियाँ लिपिकार इस रूप में प्रस्तुत कर सकता है कि लेख की पंक्तियों को इस प्रकार व्यवस्थित करे कि पृष्ठ में स्वस्तिक या स्तम्भ या डमरू या इसी प्रकार का अन्य चित्र उभर आये । पृष्ठ के बीच में स्थान छोड़कर अन्य कोई चित्र, मनुष्य की या पशु की प्राकृति के चित्र बनाये जा सकते हैं। ये सभी चित्र सजावट या लिपिकार के लेखन-कौशल के प्रदर्शन के लिए होते हैं । पांडुलिपियों में ताड़पत्रों के ग्रंथों के पत्रों के बीच में डोरी या सूत्र डालने के लिए गोल छिद्र किए जाते थे और लिखने में बीच में इसी निमित्त लेखक गोलाकार स्थान छोड़ देता था। यह अनुकरण कागज की पाण्डुलिपियों में भी किया जाने लगा । इस गोलाकार स्थान को विविध प्रकार से सजाया भी जाने लगा। उपयोगी चित्रों वाली पुस्तकें
सजावट वाले चित्रों से भिन्न जब ग्रंथ के विषय के प्रतिपादन के लिए या उसे दृश्य बनाने के लिए भी चित्र पुस्तक में दिये जाते हैं, तब में चित्र पूरे पृष्ठ के हो सकते हैं और ग्रंथ में आने वाली किसी घटना का एवं दृश्य का चित्रण भी इनमें हो सकता है । कभीकभी इन चित्रों में स्वयं लेखक को भी हम चित्रित देख सकते हैं। पूरे पृष्ठों के चित्रों के अतिरिक्त ऐसी चित्रित पुस्तकों में पृष्ठ के ऊपरी आधे भाग में, नीचे आधे भाग में, पृष्ठ के बाईं ओर के ऊपरी चौथाई भाग में या बाईं ओर के नीचे के चौथाई भाग में, या नीचे के चौथाई भाग में चित्र बन सकते हैं या बीच में भी बनाए जा सकते हैं। ऊपर नीचे लेख और बीच में चित्र हो सकते हैं । जब कभी किसी काव्य के भाग को प्रकट करने के लिए
... 1. कोटा-संग्रहालय में श्रीमद्भागवत की एक ऐसी पाण्डुलिपि है जिसका प्रत्येक पृष्ठ रंगीन चित्रों से चित्रित है।
___ कलकत्ता आशुतोष-कला-संग्रहालय में एक कागज पर लिखी 1105 ई० की बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय की पाण्डुलिपि है, इसमें बौद्ध देवताओं के आठ चित्र हैं। इस प्रति का महत्व इसलिए भी है कि यह कागज पर लिखे प्राचीनतम ग्रंथों में से है।
__ अलवर संग्रहालय में महत्वपूर्ण चित्रित पाण्डुलिपियाँ इस प्रकार हैं-(1) भागवत-कुण्डली रूप में लिखित. चित्रयुक्त 18 फुट लम्बा है। (2) गीत गोविन्द, अलवर शैली के चित्रों से युक्त है, (3) वाकयातेबाबरी, हुमायू. के समय में तुर्की से फारसी में अनुदित हुई । इसमें चित्र भारतीय-ईरानी शैली के हैं। 'शाहनामा-इसके चित्र उत्तर-मुगल-काल की शैली के हैं। 'गुलिस्तां'-इसकी वह प्रति यहाँ सुरक्षित है जिसे महाराजा विनयसिंह ने पौने दो लाख रुपये व्यथः करके तैयार कराया था और इसको तैयार करने में 15 वर्ष लगे थे।
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