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पाण्डुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसंधान/121
मेनांडर और पुष्यमित्र के समकालीन थे। पूर्वी भारत के गोनार्द के वे निवासी थे और कुछ समय के लिए कश्मीर में भी रहे थे। उनकी माँ का नाम गोणिका थागोल्डस्टुकर पाणिनि 234। LitRem i, 131 ff. LiAii, 485.
BD8. 1 A, i, 299 ff. JBRAS, XVI, 181, 199. सन ई० 476 आर्यभट्ट, ज्योतिषी का जन्म कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) में, प्रार्थाष्टक तथा
दशगीतिका का रचयिता-WL. 257. Indische Streifen, iii, 300-2 गणकतरंगिणी, ed. सुधाकर, The Pandit, N. S. XIV
(1892), P. 2. 600 कविबाण, श्री हर्षचरित, कादम्बरी और चंडिकाशतक के रचयिता,
मयूर, सूर्य-शतक के रचयिता, दण्डी, दशकुमार चरित एवं काव्यादर्श के रचयिता और दिवाकर इस काल में थे क्योंकि ये कन्नौज के हर्षवर्द्धन के समसामयिक थे। जैन परम्परा के अनुसार मयूर बाण के श्वसुर थे। भक्तामर स्तोत्र के रचयिता मानतुंग भी इसी काल के हैं। व्हलर, Di indischer Inschriften Petersons सुभाषितावली, Int. 88.
VOJ, IV, 67. 1490 हिन्दी कवि कबीर इसी काल के लगभग थे क्योंकि वे दिल्ली के सिकंदर
शाह लोदी के समसामयिक थे-BOD. 204। उड़िया के कवि दीन कृष्णदास, रस-कल्लोल के कर्ता भी सम्भवतः इसी काल में थे। वे उड़ीसा के पुरुषोत्तम देव (जिनका राज्यकाल 1478-1503 के बीच
माना जाता है) के समसामयिक थे, मादि । इस पद्धति में यह दृष्टव्य है कि प्रथम स्तम्भ में केवल सन् (ईस्वी) दिया गया है। और सभी बातें दूसरे स्तम्भ में रहती हैं। जिन घटनाओं की ठीक तिथियाँ विदित हैं वे यदि एक ही वर्ष के अन्दर घटित हुई हैं, तो उन्हें तिथि-क्रम से दिया जाता है।
हमें हिन्दी के हस्तलेखों या पांडुलिपियां की ऐसी कालक्रम तालिका बनाने के लिए निम्न बातों का उल्लेख करना होगा । स्तम्भ तो दो ही रखने होंगे। पहले में प्रचलित 'सन्' उक्त इतिहास की तालिका की भांति ही देना ठीक होगा। दूसरे खाने में पहले खाने के सन् के सामने सं० लिखकर 'संवत्' की संख्या देनी होगी। उसके नीचे 'चैत्र' से प्रारम्भ करके तिथि का उल्लेख करना ठीक माना जा सकता है । तिथि का पूरा विवरण 'पुष्पिका' सहित लिखना चाहिए । 'कृतिकार' का नाम, प्राश्रयदाता का नाम, कृति के लिखे जाने के स्थान का नाम, ग्रंथ का विषय । साथ ही लिपिकार या लिपिकारों के नाम । लिपि करने का स्थान-नाम, लिपिकाल, लिपिकाल की कालक्रम से भी प्रविष्टि की जायेगी। वहाँ भी लिपिकार के साथ ग्रंथ और रचयिता का उल्लेख काल-सहित किया जायेगा, यथा---
पांडुलिपि कालक्रम तालिका क्रमसंख्या ईसवी सन्
760 वि० सं० 817
सरहपा-ब्राह्मण, भिक्षु सिद्ध (6) देश मगध (नालंदा) कृतियाँकायकोष-अमृत-वज्रगीति, चित्तकोष-अंज-वज़गीति, डाकिनी गुह्य,
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