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अध्याय
पाण्डुलिपियों के प्रकार
प्रकार-भेद : अनिवार्य
'पांडुलिपि' का अर्थ बहुत विस्तृत हो गया है, यह हम पहले के अध्यायों में देख चुके हैं । वस्तुतः विस्तृत अर्थ होने का अभिप्राय ही यह है कि उसके अन्तर्गत कितने ही प्रकारों का समावेश हो गया है। पांडुलिपि में विविध प्रकार के लिप्यासनों पर लिखी कृतियाँ भी आयेंगी, साथ ही वे ग्रन्थ-रूप में भी हो सकती हैं और राज्यादेशों के रूप में भी, चिठ्ठी-पत्री के रूप में भी, और भी कितने ही प्रकार के कृतित्व "पांडुलिपि' में समावेशित हैं । अतः 'पांडुलिपि-विज्ञान' के क्षेत्र के सम्यक् ज्ञान के लिए उसके सभी प्रकारों और प्रकार-भेदों के आधारों से कुछ परिचित होना अनिवार्य हो जाता है। यह प्रकार-भेद 'पांडुलिपि' के अभिप्राय-क्षेत्र के आधार पर किया गया है। इन प्रकारों को एक दृष्टि में निम्नस्थ वृक्ष से समझा जा सकता है :
पांडुलिपि
राजकीय
लौकिक*
अन्य
राज्यादेश या शासन चिट्ठी-पत्री कार्यालयीय नत्थियाँ ग्रन्थ (ये राष्ट्रीय आर्काइब्ज
(ये आधुनिक युग में में सुरक्षित रखे जाते
महत्त्वपूर्ण हो गयी हैं । शिलालेखादि के रूप में प्रार्यालॉजी के अन्तर्गत पाते हैं)
राजकीय
लौकिक या गैर-राजकीय संस्थाओं की। उक्त वृक्ष में हमने राजकीय क्षेत्र में भी ग्रन्थ को एक प्रकार माना है, और लौकिक में भी । राजकीय क्षेत्र में भी ग्रन्थ-रचना होती थी, इसमें सन्देह नहीं। स्वयं राजाओं ने ग्रन्थ रचना की है। किन्तु इस वर्ग में ऐसे ही ग्रन्थ रखने होंगे जिनका अभिप्राय राजकीय हो । राजा की विजय या उसकी प्रशस्ति विषयक ग्रन्थ राजकीय योजनाओं पर ग्रंथ आदि ।
लिप्यासन की दृष्टि से भी पांडुलिपियों के भेद होते हैं । लेखों को प्रासन की प्रकृति के अनुसार लेखनी/कलम से, टांकी से, कोरक से, सांचे से, छेनी से, यंत्र से लिखा जाता है।
* स्मृति चन्द्रिका में उद्धत वशिष्ठोक्ति कि 'लौकिक राजकीयं च लेख्य विद्यादू द्विलक्षणं (व्यवहार 1.14)।' इसी वशिष्ठोक्ति के आधार पर हमने भी यहाँ 'राजकीय' और 'लौकिक' दो भेद स्वीकार किये हैं ।
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