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पाण्डुलिपियों के प्रकार/133
शिलापट्टीय
सामान्य शिलालेख एक शिला-पट्ट पर लिखे जाते थे और उचित स्थान पर जड़ दिए जाते थे । पर बड़ी-बड़ी प्रशस्तियाँ और ग्रन्थ भी शिलापट्टों पर लिखे और जड़े मिलते हैं। राणा कुम्भा का लेख पाँच शिला-पट्टों पर लिखा (खोदा) हुया कुम्भलगढ़ के कुंभि स्वामिन् या मामादेव के मन्दिर में जड़ा मिला है। मेवाड़ में राजसमुद्र जलाशय के पुश्तों पर 24
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पुष्पगिरि शिलालेख शिलापट्टों पर जड़ी हुई है 'राजप्रशस्ति', इसके 24 खंड हैं। इसके रचयिता हैं कवि रण छोड़। यह प्रशस्ति राणा राजसिंह के सम्बन्ध में है। राजा भोज परमार का प्राकृत भाषा का काव्य 'कूर्मशतक', मदन की संस्कृत कृति 'पारिजातमंजरी' (या विजयश्री नाटक), चाह्माण राजा विग्रहराज चतुर्थ (1153-64 ई.) का 'हर केलि नाटक' तथा उनके राजकवि सोमेश्वर कृत 'ललित-विग्रहराज नाटक' शिला-पट्टों पर खुदवाकर दीवारों में जड़वाये गए थे । इनके अंश अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित हैं ।
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