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146 / पाण्डुलिपि - विज्ञान
पर प्लेट 7, संख्या 1 में a से i तक एक संस्कृत ग्रन्थ के टुकड़े छपे हैं जो श्री मकार्ट ने काशगर से भेजे थे । ये ईसा की चौथी शताब्दी में लिखे हुए माने गये हैं । जापान के होरियूजि मठ में दो बौद्ध ग्रन्थ रखे हुए हैं जो मध्य भारत से ले जाये गये हैं । यह 'प्रजापारमिताहृदयसूत्र' और 'उष्णपविजयधारिणी' की पुस्तकें हैं, ये ईसा की छठी शताब्दी में लिखी गयी हैं । नेपाल के ताड़पत्रीय ग्रन्थ संग्रह में 'स्कन्दपुराण' (7वीं शताब्दी में लिखित) और लंकावतार' (906-7 ई० में लिखित) की प्रतियाँ सुरक्षित हैं । कैम्ब्रिज के ग्रन्थ-संग्रह में प्राप्त 'परमेश्वर तन्त्र' भी ताड़पत्र पर ही लिखित है और यह प्रति हर्ष संवत् 252 (859 ई०) की है। राजस्थान में जैसलमेर के ग्रन्थ-भण्डार अपने प्राचीन ग्रन्थसंग्रह के लिए सर्वविदित हैं। इनमें से जिनराजसूरीश्वर के शिष्य जिनभद्रसूरि द्वारा संस्थापित बृहद्भण्डार का 1874 ई० में डॉ० बहूलर ने अवलोकन करके 1160 वि० की लिखी हुई ताड़पत्रीय प्रति को उस संग्रह की प्राचीनतम प्रति बतलाया है। इसके पश्चात् 1904-5 ई० में हीरालाल हंसराज नामक जैन पण्डित ने दो हजार दो सौ ग्रन्थों का सूचीपत्र तैयार किया । उसी वर्ष अंग्रेज सरकार की ओर से प्रोफेसर श्रीधर भाण्डारकर भी जैसलमेर गये । उन्होंने अपनी विवरणी में जन पण्डित की सूची के ही आधार पर संवत् 924 की लिखी तालपत्र प्रति को प्राचीनतम बताया। परन्तु बाद में सी. डी. दलाल द्वारा अनुसंधान करने पर संवत् 1130 में लिखित 'तिलकमञ्जरी' और 1139 में लिपिकृत 'कुवलयमाला' की ही प्रतियाँ प्राचीनतम प्रमाणित हुई । इस संग्रह में अर्वाचीनतम ताड़पत्रीय प्रति 'सर्वसिद्धान्त विषमपदपर्याप्त' नामक प्रति संवत् 1439 वर्ष में लिखित है । परन्तु जैसलमेर के ही दूसरे तपागच्छ ग्रन्थ भण्डार में 'पञ्चमीकहा ' ग्रन्थ की प्रति 1109 वि. की लिखी हुई है जो वृहद् भण्डार की प्रति से भी प्राचीन है । इसी प्रकार हरिभद्रसूरि कृत 'पंचाशकों' की संवत् 1115 में लिखित प्रति भी इस भण्डार में विद्यमान है। जैसलमेर में डूंगरजी-यति-संग्रह और थाहरूशाह भाण्डागार नामक दो संग्रह और हैं किन्तु इनमें उक्त भण्डारों की अपेक्षा अर्वाचीन ग्रन्थ हैं । 1
गुजरात के खम्भात के शांतिनाथ ज्ञान भण्डार में भी संवत् 1164 में लिखित 'जीवसमासवृत्ति' और 1181 संवत् में लिखित मुनिचन्द्रमूरि रचित 'धर्माबिन्दुटीका' की प्राचीनतम ताड़पत्रीय प्रतियाँ उपलब्ध हैं ।
भाण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना में 'उपमिति भवप्रपञ्च कथा' नामक जैन ग्रन्थ की 178 पत्रों की ताड़पत्रीय प्रति उपलब्ध है जो विक्रम संवत् 962 (905-6 ई०) में लिखी गई है । इस ग्रन्थ की भाषा संस्कृत है ।
भूर्जपत्रीय ( भोजपत्र पर लिखे ग्रन्थ)
भूर्जपत्र से तात्पर्य है भूर्ज नामक वृक्ष की छाल । यह वृक्ष हिमालय प्रदेश में . बहुतायात से होता है । इसकी भीतरी छाल कागज की तरह होती है, उसी को निकालकर बहुत प्राचीन समय से लिखने के काम में लिया जाता था । भले ही लेखन का प्रथम अभ्यास पत्थरों पर हुआ हो पर अवश्य ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि लिखने की प्रथा
1. जैसलमेर - माण्डागारीय ग्रन्थानां सूचीपत्त्रस्य प्रस्तावना - लालचन्द्र भगवानदास गाँधी, 1923 ई० । 2. श्री खंभात, शान्तिनाथ : प्राचीन ताड़पत्रीय, जैन ज्ञान भण्डार नुं सूचीपत्र सूचीकर्ता - श्री विजयकुमुद सूरि ।
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