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इस आधार से लिप्यासन के दो प्रकार हो जाते हैं : इन्हें 'कोमल' तथा 'कठोर' कहा जाता है । कोमल पर लिखा जाता है, कठोर पर । उत्कीर्ण किया जाता है।
पांडुलिपि (लिप्यासन की दृष्टि से प्रकार)
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लेखन निमित्त : कोमल लिप्यासन वाली
130, पाण्डुलिपि-विज्ञान
उत्कीगत निमित्त : कठोर लिप्यासन वाली
पाषागीय
मृण्यम
सीप-दांतिकी ताम्रपत्रीय स्वर्ण-पत्रीय रजत-पत्रीय अन्य धातुओं
की
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नाइपत्रीय भोजपत्रीय अगरुपत्रीय या
पटीय
चर्मपत्रीय कागजीय काष्ठीय (भूर्ज का एक पर्याय- समुचीपात । य (वस्त्र-निर्मित) चर्मपत्रीय-ग्रन्थ भारत कागजीय-पांडु
वाची शब्द लेखन भी ग्रंथ आसाम में संस्कृत में कापाषिक में कम । जैसलमेर के लिपियों पर लेखनी लिखित उत्तर शलाका-कोरित है) ग्रंथों के अतिरिक्त मिले । 15वीं पट। 1351-52 ई. एक पुस्तकालय में एक आगे विस्तार में । भगवान बुद्ध के दक्षिण में भोजपत्र पर चिट्ठियाँ शती का सुन्दर की एक प्रति श्रीप्रभ- कोरा चर्म-पत्र मिला से वर्णन है। उपदेश उनकी मृत्यु के 15वीं शती से विशेषतः लिखी कांड पेरिस में सूरि की 'धर्मविधि' था। रूस में पीटर्सबर्ग तुरन्त बाद ताड-पत्रों पूर्व के ही जाती थीं । अभी सुरक्षित है। की उदयसिंह की के संग्रहालय में काशपर लिखे गये । प्राचीन मिलते हैं। तक प्राप्त प्राचीनतम
टीका सहित कपड़े गर से प्राप्त कुछ चर्म ताडपत्रीय ग्रंथ भारत भोजपत्रीय ग्रन्थ
के 13 पन्नों में प्रत्येक पत्र हैं जिन पर भारसे बाहर एशिया में खरोष्ठी लिपि में,
पाना 13X5", तीय लिपि में लिखा तुरफान आदि में मिले। प्राकृत भाषा में
जन पुस्तकालय हुआ है। होरीयुजी (जापान) में धम्मपद हैं जो 2री
अन्हिलवाड़ा में सुरउष्णीय विजय धारणी 3री शती में प्रति
क्षित है। रेशमी पाट 7वीं शती ई. में भारत लिपित हैं और
भी काम में प्रामा में लिपिबद्ध हुई । नेपाल खोतान में मिली हैं।
था। में ताड़पत्रीय स्कंद पुराण 7वीं शती का प्रतिलिपित माना जाता है।
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