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128/पाण्डुलिपि-विज्ञान
प्रमाद करते हैं, 3. वे महत्त्व को ठीक नहीं आंक (appriase) पाते, फलतः अभिलेखागारों में से कभी-कभी महत्त्वपूर्ण कागज-पत्र नष्ट करवा दिये गए, रद्दी हस्तलेखों को सुरक्षित रखा गया। इससे सरकार को और व्यक्ति को भी हानि उठानी पड़ी है, 4. स्वार्थियों ने साक्षी को नष्ट करने या बिगाड़ देने के लिए हस्तलेखों में जालसाजी की, 5. कुछ हस्ताक्षरों (autograph) और मुद्राओं (scal)/मुहरों के सङ्कलनकर्ता अभिलेखों में से उन्हें काट लेते हैं, कुछ को यों ही कतरनों का शौक होता है। ये सभी काम अभिलेखों के प्रति शत्रता के काम हैं।
_ लेखों-अभिलेखों में हेरफेर करना भी जालसाजी है। यह जालसाजी बहुत घातक है। ऐसी ही एक जालसाजी की बात राजतरंगिरणी के लेखक द्वितीय (तृतीय) जोन राज ने बताई है, जिसका हम पहले उल्लेख कर चुके हैं। इसमें स्वयं जोन राज के साथ उस व्यक्ति ने भोजपत्र पर लिखे भूमि के बिक्रीनामा में जालसाजी करके सारी भूमि हड़प लेनी चाही थी। पर पहले बिक्रीनामा पक्की स्याही से लिखा गया था बाद में जालसाज ने कच्ची स्याही से जाल किया था । फलतः पानी में भोजपत्र के डाल देने पर कच्ची स्याही चल गयी
और जाल सिद्ध हो गया। महाकवि भास के बहुत-से ग्रन्थ कुछ वर्ष पूर्व मिले थे। एक विद्वान् ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया था कि वे जाली हैं। ब्रिटिश म्यूजियम में ऐसी जाली वस्तुओं का अलग ही एक कक्ष बना दिया गया है।
अतः पांडुलिपि-विज्ञानविद् को पुस्तक की आन्तरिक और बाह्य परीक्षा द्वारा यह आश्वस्त हो लेना आवश्यक है कि कोई पांडुलिपि जाली तो नहीं है ।
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