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पाण्डुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसंधान, 123
इस सूची का यह दावा नहीं कि इसमें जितने भी सम्भव संग्रह हो सकते हैं, सभी का उपयोग कर लिया गया है । इस कथन से उस भ्रम को दूर किया गया है, जो सम्भवतः इस सूची को देखकर पैदा होता कि इस लेखक ने सूची अद्यतन पूर्ण कर दी है, अब और कुछ शेष नहीं रहा । वस्तुतः मानवीय प्रयत्नों की सामर्थ्य और सीमानों के कारण ऐसा दावा कोई भी नहीं कर सकता कि ऐसी सूची उस विषय की अन्तिम सूची है।"
__फिर लेखक ने यह भी इंगित कर दिया है कि इस सूची में दादू के शिष्यों के द्वारा प्रस्तुत किये गये साहित्य का ही समावेश है, किसी अन्य की कृति का समावेश किया गया है तो यथास्थान उसका उल्लेख कर दिया गया है ।
लेखक ने सूची में उन ग्रन्थों की पांडुलिपियों का उल्लेख करना भी समीचीन समझा है जिनका मुद्रित रूप मिल जाता है। ऐसा उसने पाठालोचन के लिए उनकी उपयोगिता को दृष्टि में रख कर किया है।
यह सूचना भी उसने दी है कि सन्-संवत की संख्या से ईस्वी सन् (A.D.) ही अभिहित है। प्रतिलिपि के कालक्रम से ही ग्रन्थ सूची तैयार की गई है।
__इस सम्बन्ध में लेखक के पक्ष में हमें यह कहना है कि प्रतिलिपि-काल अधिकांश पांडुलिपियों में मिल जाता है, जब कि रचना-काल बहुत कम रचनाओं में प्राप्त होता है । यह बात संत-साहित्य के सम्बन्ध में सर्वाधिक सत्य है। अतः सूची बनाने में क्रम की दृष्टि से वैज्ञानिक आधार प्रतिलिपि का काल ही हो सकता है। यों भी प्रतिलिपि-काल महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह काल यह तो सिद्ध करता ही है कि रचना इस काल से पूर्व हुई। यह काल ग्रन्थ की लोकप्रियता का भी प्रसारण होता है, और लिपि के तत्कालीन रूप की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
___ इसके बाद संग्रहों या संग्रहालयों की संकेत सूची गई है, क्योंकि सूची में आगे संकेताक्षरों से ही काम चलाया गया है। ऐसे 16 संग्रहों या संग्रहालयों के संकेताक्षर दिये गये हैं, यथाः 'D.M' : दादू महाविद्यालय, मोती डूंगरी, जयपुर।
जिन संग्रहों से यह सूची प्रस्तुत की गई है वे निम्न प्रकार के हैं : 1. संस्थानों के संग्रह, जैसे-दादू महाविद्यालय का, दादूद्वारा नरैना का, काशी नागरी
प्रचारिणी सभा का, अनूप संस्कृत पुस्तकालय बीकानेर का, आदि। . 2. ऐसी बड़ी संस्थाओं के अन्तर्गत विशिष्ट वर्ग या कक्ष के संग्रह, यथा : NPM :
यह संकेत काशो नागरी-प्रचारिणी सभा वाराणसी (Varanasi) के पुस्तकालय के 'मायाशंकर याज्ञिक संग्रह के लिए है। ऐसे महाग्रंथ जिनमें ग्रंथ संकलित हों, यथा : NAR, MG यह संकेताक्षर 'दादू
द्वारा नरैना' के महाग्रंथ का द्योतक है। 4. ऐसी सूचियाँ जिनमें पांडुलिपियों का उल्लेख है : यथा : NPV. यह काशी नागरी
प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित हिन्दी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण (1900-55)। I-II 1964 के संस्करण का द्योतक है। इस विवरण
से भी दादूपन्थी ग्रन्थों को इस सूची में सम्मिलित किया गया है। 5. व्यक्तियो के संग्रह, यथा : KT. यह संकेताक्षर है पं० कृपाशंकर तिवारी, 1,
म्यूजियम रोड़, जयपुर के संग्रह के लिए है ।
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