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पाण्डुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान/119
यह तालिका उपयोगी है, यह स्वयंसिद्ध है, क्योंकि सन्दर्भ की दृष्टि से भी खोजविवरणों का उल्लेख कर दिया गया है, जहाँ विस्तृत विवरण देखे जा सकते हैं। संख्या 4 को दो भागां में भी विभाजित किया जा सकता है : प्रथम-यह भाग केवल समय-द्योतक होगा, और दूसरा, यह भाग विवरणिकाओं का उल्लेख करेगा। डॉ० हीरालाल ने केवल ना० प्र० स० के खोज के विवरणों के ही उल्लेख दिये हैं, पर पांडुलिपि-विज्ञानार्थी को जितने भी ऐसे विवरण मिलें उन सभी से सूचनाएँ देनी होगी। स्पष्ट है कि यह तालिका जितनी परिपूर्ण होगी उतनी ही अधिक उपादेय होगी।
इस विवेचन से हमारा ध्यान डॉ० किशोरीलाल गुप्त के प्रयत्न की ओर जाता है जो उन्होंने 'सरोज सर्वेक्षण' के रूप में प्रस्तुत किया है । 'सरोज' में दिये विवरणों की अन्य स्रोतों से प्राप्त सामग्री का उपयोग कर उन्होंने परीक्षा की है और उनके सम्बन्ध में सप्रमाण अपना निर्णय भी दिया है। पांडुलिपि-विज्ञानार्थी के लिए यह प्रणाली उपयोगी है, इसमें सन्देह नहीं। वह किसी भी प्राप्त 'पांडुलिपि' के विषय में उपलब्ध अन्य सामग्री से इसी प्रकार परीक्षा करके टिप्पणी देगा, इससे अद्यतन ज्ञातव्य की सूचना उपलब्ध रह सकेगी।
इसी परिपाटी का पल्लवित रूप वह है जो 'चन्दकवि' के विवरण में ऊपर दिया गया है। ऐसे विवरण एक-एक कवि पर पांडुलिपि-विज्ञानार्थी को प्रस्तुत कर लेने चाहिए ।
ऊपर हम देख चुके हैं कि विवरण के मुख्यतः दो भाग होते हैं। एक को 'परिचय' कह सकते हैं। इसका विस्तृत विवरण विवेचनापूर्वक दिया जा चुका है। दूसरा अंश है : विषय का अंतरंग परिचय आदि, मध्य और अन्त के उद्धरणों सहित ।
काशी नागरी-प्रचारिणी सभा की खोज-रिपोर्टों में प्रारम्भ में आदि, मध्य (कभी मध्य उद्धृत नहीं भी किया जाता था) और अन्त के छंद-मात्र दे दिए जाते थे। प्रारम्भ मान लीजिए दोहे से है तो मात्र वह दोहा दे दिया जाता था। अन्त एक कवित्त से हो रहा है तो बस केवल उसी को दे देते थे । इससे विषय का अपेक्षित परिचय नहीं मिल पाता था । अतः जार्ज ग्रियर्सन के परामर्श से इस विषय के अंतरंग परिचय को अधिक विस्तार दिया जाने लगा। विषय की भी कुछ अधिक विस्तृत रूपरेखा दी जाने लगी। इस बात की ओर उक्त 'विवरणिका' में डॉ० हीरालालजी ने संकेत किया है :
"इसमें विगत विवरणिकानों की अपेक्षा ग्रन्थों के विषय का विवरण विस्तार से दिया भी गया है। केवल उन्हीं का विवरण नहीं दिया गया है जिनका विवरण विगत विवरणिकाओं में विस्तृत रूप में विद्यमान है। ऐसा सर जार्ज ग्रियर्सन के सुझाव से ही किया गया है जो उपादेय तो अवश्य है किन्तु इससे विवरणिका विस्तार बहुत हो गया
विस्तार के रूप
विवरण के विस्तार के भी तीन रूप सम्भवतः माने जा सकते हैं ।
1. विषय का ब्यौरेवार बहुत संक्षेप में सार-रूप । इससे ग्रन्थ के प्रतिपाद्य का कुछ ज्ञान हो सकता है। यह परिचय ग्रन्थ का ज्ञान कराने के लिए नहीं होता, वरन् ग्रन्थ
1. हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों का प्रयोदश वैवाषिक विवरण, पृ.7।
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