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118/पाण्डुलिपि-विज्ञान
नि०, सितारा के राजा शम्भुनाथसिंह सुलकी, उर्फ शम्भुकवि, उर्फ नाथ कवि, उर्फ नृपशम्भु, 1650 ई० के आस-पास उपस्थित, सुन्दरी तिलक, सत्कविगिराविलास, कवियों के आश्रयदाता ही नहीं, स्वयं एक प्रसिद्ध ग्रन्थ के रचयिता, यह शृंगार-रस में है और इसका नाम 'काव्य निराली' (?), कि०, शम्भुनाथ सोलंकी क्षत्रिय नहीं, मराठे, सरोज में इस कवि के सम्बन्ध में लिखा है.---"शृंगार की इनकी काव्य निराली है। नायिका-भेद का इनका ग्रन्थ सर्वोपरि है । इसी का भ्रष्ट अंग्रेजी अनुवाद ग्रियर्सन ने किया है और इनके काव्य ग्रन्थ का नाम 'काव्य निराली' ढूढ़ निकाला है। इनका नखशिख रत्नाकार जी द्वारा सम्पादित होकर भारत जीवन प्रेस, काशी से प्रकाशित हो चुका है।"
इन उद्धरणों से इस प्रणाली का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है । कालक्रम में सबसे पहला ग्रन्थ 'सरोज' अर्थात् शिवसिंह सरोज, उसने कवि का उल्लेख सबसे पहले किया। आधार ही उसे बनाया है । सरोज का द्योतक संकेताक्षर 'सत्' । उसके बाद ग्रियर्सन ने सूचना दी है । ग्रियर्सन का द्योतक संकेताक्षर 'नि०' तब 'कि०' संकेताक्षर से किशोरीलाल गुप्त को अभिहित कराते हुए उनके 'सरोज सर्वेक्षण' से आवश्यक जानकारी संक्षेप में दे दी है। इस प्रकार एक ऐसी सूची या तालिका की आधारशिला प्राचार्य शर्मा ने रख दी है जिसमें पांडुलिपि विज्ञानार्थी अपनी दृष्टि से यथास्थान नये कवियों का नाम और आवश्यक सूचना जोड़ता जा सकता है तथा टिप्पणी देकर अद्यतन अध्ययनों से प्राप्त ज्ञान को हस्तामलकवत् कर सकता है।
पांडुलिपि विज्ञानार्थी इसी सूची का उपयोगी सम्वर्द्धन दो प्रकार से कर सकता है : प्रथम तो अब तक की खोजों के विवरणों से सामग्री लेकर ।
यथा, खोज में उपलब्ध हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों का अठारहवाँ त्रैवार्षिक विवरण (सन् 1941-45 ई०) द्वितीय भाग में जिसके सम्पादक पं० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र हैं : चतुर्थ परिशिष्ट (क) में प्रस्तुत खोज में मिले नवीन रचयिताओं की नामावली दी है, और उनका शताब्दी क्रम भी बताया है। इस नामावली में 206 कवि हैं। पांडुलिपि-विज्ञानार्थी इन नामों की परीक्षा कर अपनी तालिका में प्रामाणिक कवियों को स्थान दे सकता है ।
__इससे भी महत्त्वपूर्ण चतुर्थ परिशिष्ट (ग) है। इसमें काव्य-संग्रहों में आये नवीन कवियों की सूची दी गई है। इस सूची में गौण कवियों की तालिका और अधिक उपयोगी हो जायेगी और शोधार्थी को शोध की दिशाओं का निर्देश भी कर सकेगी।
पांडुलिपि-विज्ञानार्थी को एक तालिका और बना कर अपने पास रखनी होगी। यह तालिका उसके स्वयं के उपयोग के लिए तो होगी ही, अन्य अनुसंधाता भी उसका उपयोग कर सकते हैं । इस तालिका को रा०व० डॉ० हीरालाल जी डी०लिट०, एम०पार०ए०एस० ने त्रयोदश त्रैवार्षिक विवरण में इस रूप में दिया है। यह इन्होंने चतुर्थ परिशिष्ट में दिया है। इसकी व्याख्या यों की गई है : “महत्त्वपूर्ण हस्तलेखों के समय एवं सन् 1928 ई० तक प्रकाशित खोज विवरणिकाओं में उनके उल्लेख का विवरण ।" तालिका का रूप यह है : संख्या रचयिताओं हस्तलेखों प्राप्त हस्तलेखों के विशेष का नाम का नाम उल्लेख तथा समय
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1. शर्मा, नलिन विलोचन-साहित्य का इतिहास-दर्शन, पृ० 226 ।
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