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116 / पाण्डुलिपि - विज्ञान
कर दिया है कि समान छंद या कवि का नामोल्लेख किसी अन्य सुभाषित संग्रह में भी है । तीसरा महत्त्वपूर्ण संकेत इस तालिका में यह दिया गया है कि इन गौण कवियों के सम्बन्ध में 'साहित्य' तथा 'जीवनी' सम्बन्धी कुछ सामग्री आज किन-किन स्रोतों से उपलब्ध है ।
इस पद्धति को समझाने के लिए इस तालिका में से कुछ उदाहरण दिये जाते हैं1. अचल : कवीन्द्र समुच्चय ( आगे 'क' से संकेतित), कोई सूचना नहीं ( आगे न. से संकेतित) ।
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व्याख्या : 1. अकारादि क्रम में 'अचल' पहले आता है । यह शब्द शर्माजी ने 'सदुक्ति
कर्णामृत' से लिया है ।
2. 'कवीन्द्र समुच्चय' में भी यह कवि मिलता है ।
3. 'क' संकेत से अभिप्राय है कि आगे जहाँ 'कवीन्द्र समुच्चय' का उल्लेख होगा वहाँ केवल 'क' लिखा जायेगा ।
4. 'अचल' के सम्बन्ध में कोई और सूचना नहीं मिलती। इसके लिए कि कोई सूचना नहीं मिलती, संकेताक्षर 'न' रखा है। सूची में आगे जहाँ 'न' आयेगा हाँ यही अभिप्राय होगा कि उस कवि के सम्बन्ध में कोई और जानकारी नहीं मिलती ।
74. गणपति-सु. में पीटरसन ने (पृ. 33 ) लिखा है कि जल्हरण की सू. में राजशेखर का एक श्लोक है जिसमें गगापति नामक एक कवि और उसकी कृति 'महा मोह' का उल्लेख है । '
व्याख्या : 1. संख्या 74 प्रकारादि क्रम में सूची में गणपति का स्थान बताती है ।
2. 'सु.' सुभाषितावली का संकेताक्षर है । संख्या 14 के ग्रन्थ में इसका संकेत है । वहाँ यह पूरे नाम से दे दी गई है ।
3. 'सू.' यह 'सूक्ति मुक्तावली' का संकेताक्षर है । यह सूचना 36वीं संख्या के कवि के सन्दर्भ में दी गई है ।
131. तुतातित, ऑफ ख्त (कैटेलॉगस-कैटेलेगोरम) के अनुसार सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध मीमांसक कुमारिल स्वामी का नाम 12
इन उदाहरणों से यह विदित होगा कि मिश्रबन्धुनों ने जो संक्षिप्त विवरण दिये हैं उनसे यह आगे का चरण है, क्योंकि एक शब्द या एक पंक्ति लिखने के पीछे लेखक का विशद् अध्ययन विद्यमान है, उसका उपयोग भी इस तालिका में भरपूर हुआ है । यह तालिका सूची मात्र नहीं वरन् अध्ययन-प्रमाणित विवरण है ।
प्राचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने 482 गौरण कवियों की तालिका दी है। उसके साथ यह टिप्पणी है : " ऊपर प्रस्तुत तालिका से संस्कृत" के ज्ञात गौण कवियों की संख्या का अनुमान मात्र किया जा सकता है । अन्य समस्त सुलभ स्रोतों से ऐसे नाम संकलित किये जायें तो संख्या सहस्राधिक होगी ।" निश्चय ही ऐसी तालिका प्रस्तुत करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किसी सीमा तक पांडुलिपि विज्ञानार्थी के क्षेत्र में आता है । उसके आधार पर संस्कृत साहित्य का पूर्ण इतिहास लिखना साहित्य के इतिहासकार का काम होगा ।
1. शर्मा, नलिन विलोचन, साहित्य का इतिहास - दर्शन, पृ. 14 | 2. वही, पृ. 16 ।
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