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पाण्डुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान 115
4. विषय............. 5. रचना काल... ""रचना स्थान"....." 6. लिपि काल.... ..."लिपि स्थान .... .... 7. लिपिकार 'मिश्रबन्धु विनोद' में ऐसी सूचनाएं बहुत हैं, यथा नाम (1025) टेक चन्द
ग्रन्थ (1) तत्वार्थ श्रुत सागरी टीका की वचनिका (1837),
(2) सुदृष्टि तरंगिणी वचनिका (1838), (3) षट् पाहुड वचनिका, (4) कथा कोश (5) बुध प्रकाश (6) अनेक पूजा पाठ
रचना काल--18371 ऐसी सूचनाएँ प्रकाशन करके पांडुलिपि-विज्ञानार्थी भविष्य के अनुसन्धान का बीज वपन करता है, तथा साहित्य सम्पत्ति की समृद्धि के लेखे-जोखे में भी सहायक होता है। साहित्य के इतिहास और संस्कृति के इतिहास की यथार्थ रूप-रचना में निर्मापक तन्तु या ईंट का भी काम करता है।
कभी-कभी तो रचयिता (कवि) के नाम की सूची या ग्रन्थनाम की सूची दे देना भी उपयोगी होता है । इन सूचियों से उन कवियों और ग्रन्थों की ओर ध्यान आकर्षित होता है जो भले ही गौण हो, पर साहित्य तथा संस्कृति की महत्त्वपूर्ण कड़ियां हैं। श्री नलिन विलोचन शर्मा जी ने 'साहित्य का इतिहास दर्शन' में इन गौण कवियों का महत्त्व स्थापित करने का प्रयत्न किया है और पांडुलिपि में सिद्ध विद्वान की भाँति कुछ सूचियाँ भी परिश्रम पूर्वक किये गये अनुसंधान को चरितार्थ करने वाली दी हैं। एक सूची उन्होंने संस्कृत के गोगा कवियों की विविध सुभाषित ग्रन्थों से प्रस्तुत की है।
इस तालिका में उन्होंने 'सदुक्ति कर्णामृत' से ही छांट कर गौरण कवि दिये हैं । इन कवियों को सूची में अकारादि क्रम से संजोया है, दूसरे उन्होंने इस तालिका में यह भी संकेत
1. मिश्रबन्धु विनोद, द्वितीय भाग, पृ. 818 । 2. उन्होंने यह सूची निम्न सुभाषित ग्रन्थों से तैयार की है : (क) सदुक्ति कर्णामृत (श्रीधरदास द्वारा 13वीं शती के प्रारंभ में संकलित)। यही इस तालिका
का मुख्य आधार है। (ब) कवीन्द्र वचन समुच्चय (जिसमें सभी कवि 1000 ई. से पूर्व के ही हैं)। (ग) सुभाषित मुक्तावली एवं सूक्ति मुक्तावली (घ) दोनों (जल्हण द्वारा संकलित) 13वीं शती के मध्य की है। (ङ) शाङ्गंधर पद्धति (14वीं का मध्य) । (च) सुभाषितावली (15वीं)।
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