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114/पाण्डुलिपि-विज्ञान
इस एक विस्तृत उदाहरण से उन सभी बातों पर प्रकाश पड़ जाता है, जो कि इस प्रकार के तुलनात्मक अध्ययन में उपयोग में आती हैं। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि जितनी भी उपलब्ध सामग्री है उसके आधार पर पहले तो एक सूची समान नाम के कवियों को बनायी जानी चाहिए। इसमें संक्षेप में वे आवश्यक सूचनाएँ दी जानी चाहिए जो सामान्यतः अपेक्षित हैं, यथा-उनके ग्रन्थ, उनका रचना-काल एवं उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के सम्बन्ध में अन्य सूचनाएँ ।
इनके आधार पर यह देखना होगा कि कौन-कौन से कवि ऐसे हैं जो एक ही व्यक्ति हैं, भले ही उनके नोटिस या विवरण अलग-अलग लिए गए हों । इस प्रकार समस्त उपलब्ध सामग्री का एक सरसरा निरीक्षण प्रस्तुत हो जाता है, जो विषय के अध्येता के लिए उपयोगी हो सकता है।
इसके साथ ही अपने संग्रह में उपलब्ध इसी नाम के कवियों के ग्रन्थों की कुछ विस्तार से चर्चा कर देने से यह भी पता चल सकता है कि क्या हमारी सामग्री बिल्कुल नयो उपलब्धि है और क्या किन्हीं दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हो सकती है ?
यह कहने की आवश्यकता नहीं कि उपर्युक्त एक नाम के कवियों और उनकी कृतियों की यह चर्चा इन कवियों का अध्ययन नहीं है, इसका उद्देश्य केवल जानकारी देना है।
अब पाण्डुलिपि विज्ञानार्थी को इसी प्रकार की अन्य अपेक्षित सूचियाँ या तालिकाएं भी अपने तथा अन्यों के लिए अपेक्षित उपयोगी जानकारी या सूचना देने के लिए प्रस्तुत करनी चाहिए।
यहाँ तक उन प्रयत्नों का उल्लेख किया गया है जो पाण्डुलिपि के सम्पर्क में प्राने पर पांडुलिपि विज्ञानार्थी को करने होते हैं ।
विवरण प्रकार : इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है विवरण लेने और प्रस्तुत करने का । इन प्रयत्नों को संक्षेप में यों दुहराया जा सकता है। विवरण कई प्रकार के हो सकते हैं :
एक प्रकार को 'लघु सूचना' कह सकते हैं, इसमें निम्नलिखित बातों का उल्लेख संक्षेप से पर्याप्त माना जा सकता है। 1. क्रमांक 2. रचयिता का नाम ........."(अकारादि क्रम में) 3. ग्रन्थ नाम"
डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, प्रधान मन्त्री, निरीक्षक, खोज विभाग, काशी-नागरी-प्रचारिणी-समा ने 'हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों का प्रयोदश वैवार्षिक विवरण (सन् 1926-28 ई.) की 'पूर्व पीठिका' में इसी प्रकार का एक सुझाव दिया था। उन्होंने लिखा है, "गेरा विचार है कि कुछ प्रमुख ग्रन्थकारों पर खोज की सामग्री के आधार पर कुछ पुस्तकें पृथक रूप में कुमशः प्रकाशित की जाय । इनसे अनुसन्धान करने वालों को विशेष लाभ तो होगा ही, आलोचना करने गलों और ग्रंथ सम्पादित करने वालों को भी सरलता होगी। अनायास उन्हें बहत-सी सामग्री घर बैठे मिल जायगी। इधरउधर भटकने की आवश्यकता नहीं पडेगी।" (प.द)
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