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106/पाण्डुलिपि-विज्ञान
(स) रचना-श्री राम जी चौपर को ष्याल रचनाकार-कवि चन्द (हित) लिपिकाल--- 1 82 3, अपूर्ण । फोलियो 15 से 20 तक ।
इस रचना में 12 पद पूर्ण हैं। 13वाँ पद पूर्ण नहीं है और मागे के पृष्ठ नहीं है । अतः यह विदित नहीं होता कि रचना कितनी बड़ी है । पद बड़े सुन्दर हैं । भाषा ब्रजभाषा है । कवित्ता सवैया का प्रयोग है । उदाहरणार्थ :---
चीपर को पयाल सब षेलत जगत माझ
यह सब ही को ज्ञान प्रगट दिषावै है। नोट :---यह चन्द हित है, इनका रचनाकाल जानना है । तीनों ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण
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उदाहरणार्थ--'श्री राम जी चौपर को ज्याल' के पद उद्धृत किये जाते हैं।
चौपर
कविता बनावें पाछे अछरनि लावै जानि जमक मिलावै अनुप्रास हं सबै कहौं । भाट ह्व सुनाव हरखावै ललचाव, दाम एक नहिं पाव वृथा नर की कृपा चहै। सब मैं प्रवीन हरिपद मैं न लीन प्रेम रस के नहीं लहै . भक्ति सौ विमुख ताको मुख न दिखाओ हम चाहत हैं यह वासौं दूर नित ही रहै उत्तम पदारथ बनाय के जो आगे धरै तहि नहि देखें यह भुस को चरेल है। असे परमारथ की बात न सुहात याहि बृथा बकवाद विख सेवे बिगरैल है ।
आगे और पीछे को विचार नाहि करे कम् महानीच सबही सौं अरत अरेल है हरि गुरु कौं संतन को रूप नहि जान्यो यात भक्तिहीन नर सींग पूछ बिन वैल है ।।
अब साय लिक्खते
रूप के सरोवर में अली कुमुदावली है लाल है चकोर तहां राधा मुख चन्द है छवि की मरीचिन सौ सींचत है निस दिन कोटि कोटि रवि ससि लागे अति मन्द है इकटक कर रहैं मुख नाम सुख लहैं फिरि कृपा दृष्टि चहैं सुख रूप नंदनंद हैं
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