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पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान 107
जाको बेद गावै मुनि ध्यान हुं न पावै तती बलि बलि जावै चन्द फसे प्रेम फन्द्र है। पीत रंग बोरे खरे खेलत है हौरी दाऊ वृन्दावन वीथिन मैं धूम मची भारी हैं। सुधर समाज सब सखी सौंज लिये सौहैं फैटनि गुलाल कर कंज पिचकारी हैं। चोटनि चलाव तब तब चावत अदायनि यो नैननि नचावत हंसत सुकुवारी हैं । हो हो कहि बोलें चन्द हित संग डोने
कहै सुख को निकेत ये बिहारिन बिहारी है ।। (द) रचना---चंद्र नाथ जी की सबदी प्रति गृढ भाषा में 19 पद हैं । यह ग्रन्थ योग से सम्बन्धित है ।
उदाहरण
काया सोनौ सिध सुनार प्रारम्भ अग्नि जगावण हार । ताहि अग्नि को लागौ पास
अग्नि जगाई चकमक स्वास । (3) ग्रन्थ----श्री नीतिसार भाषायाम रचनाकार-कवि चन्द रचनाकाल-जयपुर नरेश सवाई जयसिंह जी का समय लिपिकाल-कवि के समय का अथवा अनुमान से 200 वर्ष प्राचीन
विवरण
यह पुस्तक 5:8 इंच चौड़ी लगती है। दोनों ओर 1 इंच की जगह छूटी हुई है। एक हाथ की सुन्दर सधी हुई लिखावट है । यह पुस्तक अलग-अलग जुज में है, इस समय बिना सिलाई के है । सारी रचना जो विद्यमान है उसका अन्तिम फोलियो नं. 59 है परन्तु गणना करने से 64 होती है। प्रारम्भ का फोलियो अप्राप्य है, मध्य के 16 फोलियो नहीं हैं । अन्त के अनुमान से 1 या 2 फोलियो नहीं हैं ।
यह रचना कवि चंद रचित है, कवि ने जयपुर राज्य के मुसाहिब श्री मनोलाल दरोगा के लिए यह रचना की। मनोलाल दरोगा धर्मात्मा, वीर, उदार, नीतिज्ञ था। रचना में नीतिसार ग्रन्थ को अपूर्व कौशल के साथ ब्रजभाषा में दोहा, सोरठा, चौपाई, बरवे, अडिल, त्रोटक, छप्पय, कवित्त, कुण्डलियाँ, आदि छंदों में प्रकट किया है । राजनीति सम्बन्धी सम्पूर्ण आवश्यक बातों का, यथा-युद्ध की सामग्री, व्यूह प्रति व्यूह आदि अनेक बातों का उल्लेख किया गया है । अनेक दृष्टियों से यह रचना महत्त्वपूर्ण है। राजा-मन्त्री के गुणों का विस्तार से प्रकटीकरण है। कवि ने रचना को सर्गों में विभाजित किया है।
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