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पांडुलिपि प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसंधान / 85
(ख) 1-- कागज के प्रकार के साथ कागज के सम्बन्ध में ही कुछ अन्य बातें और
दी जाती हैं :
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कागज का रंग स्वाभाविक है या काल - प्रभाव से अस्वाभाविक हो गया है ।
क्या कागज कुरकुरा (Brittle) हो गया है ?
कीड़ों-मकोड़ों या दीमकों या चूहों से खा लिया गया है ? कहाँ-कहाँ, कितना ? इससे ग्रन्थ के महत्त्व को क्या और कितनी क्षति पहुँची है ।
समस्त पांडुलिपि में क्या एक ही प्रकार का कागज है, या उसमें कई प्रकार के कागज हैं ?
इन ग्रन्य बातों का अभिप्राय यह होता है कि कागज विषयक जो भी वैशिष्ट्य है वह विदित हो जाय ।
(ख) 2 -- कागज से काल-निर्धारण में भी सहायता मिल सकती है । इस दृष्टि से भी टीप देनी चाहिये ।
(ग) पत्रों की लम्बाई-चौड़ाई- -यह लम्बाई-चौड़ाई इंचों में देने की परिपाटी 'लम्बाई इंच चौड़ाई इंच' इस रूप में देने में सुविधा रहती है। अब तो सेंटीमीटर में देने का प्रचलन भी आरम्भ हो गया है ।
3. पांडुलिपि का रूप - विधान
(क) पंक्ति एवं प्रक्षर परिमाण - सबसे पहले लिपि का उल्लेख होना चाहिये । देवनागरी है या अन्य ?1 यह लिपि शुद्ध है या अशुद्ध ? पांडुलिपि के अन्तरंग-रूप का यह एक पहलू है ।
प्रत्येक पृष्ठ में पंक्तियों की गिनती दी जाती है, दी जाती है। इनकी श्रीमत संख्या ही दी जाती है। अक्षर-परिमाण विदित हो जाता है ।
तथा प्रत्येक पंक्ति में ग्रक्षर संख्या इससे सम्पूर्ण ग्रन्थ की सामग्री का
संस्कृत ग्रन्थों में 'अनुष्टुप' को एक श्लोक की इकाई मान कर श्लोक संख्या दे दी जाती थी । इस सम्बन्ध में 'भाग्यसं० अ लेखन कला' से यह उद्धरण यहां देना समीचीन होगा :
3.
........... ग्रन्थनी श्लोक संख्या गरवा माटे कोईपण साधुने थे नकल आपवामां श्रावती ने ते साधु "बत्रीस ग्रक्षरता श्रेक श्लोक" ने हिसावे श्राखा ग्रन्थना अक्षरों गणीने श्लोक संख्या नक्की करतो" ।। 3 बत्तीस अक्षर का एक अनुष्टुप श्लोक होता है : एक चरण में 8 अक्षर, पूरे चार चरणों में 84 = 32 अक्षर । इस प्रकार गणना का मूलाधार अक्षर ही ठहरता है ।
(ख) पत्रों की संख्या -पंक्ति एवं ग्रक्षरों का विवरण देकर यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि पत्रों की पूर्ण संख्या भी दे दी जाय । यथा टसीटरी, 436 पत्रों का वृहदाकार
मारवाड़ी लिपि में लिपिबद्ध
1. यथा- देसीटरी "कुछ देवनागरी में और कुछ
है ।" परम्परा (28-29), पृ. 146 1
2.
यह पद्धति भी है कि कम से कम अक्षरों की संख्या और अधिक से अधिक अक्षरों की संख्या दे दी जाती है, यथा 23 से 25 तक ।
मारती जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ. 106
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