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96/पाण्डुलिपि-विज्ञान
ग्रन्थों की सूची, (4) में महत्त्वपूर्ण हस्तलेखों की समय-सूचक तालिका । यह परिपाटी दीर्घ अनुभव का परिणाम है। इसे कोई भी पांडुलिपि-विज्ञान-विद् अपने लाभ के लिये अपना सकता है।
तात्पर्य यह है कि लेखे-जोखे के द्वारा ग्रन्थ शोध से प्राप्त सामग्री का संक्षेप में मूल्यांकन प्रस्तुत किया जाता है, जिससे शोध उपलब्धियों का महत्त्व उभर सके । तुलनात्मक अध्ययन
पांडुलिपि-विद् के लिए यहीं एक और प्रकार का अध्ययन-क्षेत्र उभरता है। इसे उपलब्ध सामग्री का तुलनात्मक मूल्यांकन या अध्ययन कह सकते हैं । हमें क्षेत्रीय कार्य करते हुए और विवरण तैयार करते हुए कुछ कवि प्राप्त हुए । अब हमें यह भी जानना आवश्यक है कि क्या एक ही नाम के कई कवि हैं ? उनकी पारस्परिक भिन्नता, अभिन्नता और उनके कृतित्व की स्थूल तुलना करके अपनी उपलब्धि का महत्त्व समझा और समझाया जा सकता है । इसे एक उदाहरण से स्पष्ट करना होगा। 'चन्द कवि' नाम के कवि के आपको कुछ ग्रन्थ मिले। आपने अब तक प्रकाशित या उपलब्ध सामग्री के आधार पर उनका विवरण एकत्र किया । तब तुलनापूर्वक कुछ निष्कर्ष निकाला। इसका रूप यह हो सकता है : कवि चन्द
हिन्दी साहित्य में आदिकालीन चंदवरदायी से लेकर आधुनिक युग तक चंद नाम के अनेक कवि हुए हैं । 'मिश्रबंधु विनोद' ने 'चंद' नाम के जिन कवियों का उल्लेख किया है उनका विवरण निम्न प्रकार है। इस विवरण के साथ ‘सरोज सर्वेक्षणकार' की टिप्पणियाँ भी यथास्थान दे दी गई हैं । मिश्रबन्धु विनोद
भाग 2 पृष्ठ---548 नाम-(1316) चन्द्रधन ग्रन्थ---भागवत-सार भाषा।
कविताकाल--1863 के पहले (खोज 1900)। यहाँ वैषम्य केवल इतना है कि हमारे निजी संग्रह के कवि का नाम 'कवि चन्द' है और मिश्रवन्धु में चन्द्रधन ।।
अब ‘चन्द' नाम के अन्य कवि 'मिश्रबन्धु विनोद' में नाम साम्य के आधार पर
प्रथम भाग (135) चन्द पृष्ठ 134 प्रन्थ-हितोपदेश कविताकाल-सं० 1563 पृ०---71 (39) नाम महाकवि चन्द बरवाई ग्रन्थ-पृथ्वीराज रासो
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