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पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान/87
यह बात ध्यान में रखने की है कि चित्र-सज्जा के कारण पुस्तक का मूल्य बढ़ जाता है । ग्रन्थ के चित्रों का भी मूल्य अलग से लगता है।
(प्रा) चित्रों की संख्या की ओर उसके कला-स्तर का उल्लेख करते हुए एक सम्भाबना की ओर और ध्यान देना अपेक्षित है । कितनी ही पुस्तकों के चित्रों में एक विशेषता यह देखने को मिलती है कि चारों कोनों में से किसी एक में चतुर्भुज बना कर एक व्यक्ति का रूपांकन कर दिया गया है । इस व्यक्ति का चित्र के मूल कथ्य से कोई सम्बन्ध नहीं बैठता । यह सिद्ध हो चुका है । यह चतुर्भुज में अंकित चित्र कृतिकार का होता है । अतः विवरण में यह सूचना भी देनी होगी कि पुस्तक में जो चित्र दिये गये हैं उनमें एक झरोखासा बना कर पुस्तक-लेखक का चित्र भी अंकित मिलता है क्या ?
__ (ग) चित्रों में विविध रंगों के विधान पर भी टीप रहनी चाहिये । हाशिये छोड़ने और हाशिये की रेखाओं की सजावट का भी उल्लेख करें। (घ) स्याही या मषी
स्याही का भी विवरण दिया जाना चाहिये :
1. कच्ची स्याही में लिखा गया है या पक्की में ? एक ही स्याही में सम्पूर्ण ग्रन्थ पूरा हुआ है अथवा दो या दो से अधिक स्याहियों का उपयोग किया गया है ? प्रायः काली और लाल स्याही का उपयोग होता है। लाल स्याही से दाएं-बाएं हाशिये की दो-दो रेखाएँ खींची जाती हैं। यह भी देखने में आया है कि ग्रन्थों में प्रारम्भ का नमोकार और "प्रथ""ग्रन्थ लिख्यते" आदि शीर्षक लाल स्याही में लिखा जाता है । इसी प्रकार प्रत्येक अध्याय के अन्त की पुष्पिका भी और ग्रन्थ-समाप्ति की पुष्पिका भी लाल स्याही से लिखी जाती है । पूरा ग्रन्थ काली स्याही में, उसके शीर्षक और पुष्पिकाएँ लाल स्याही में हों तो उसका उल्लेख भी विवरण में किया जाना उचित प्रतीत होता है। किन्हीं ग्रन्थों में ऐसे स्थलों पर लाल रंग फेर देते हैं, और उस पर काली स्याही से ही पुष्पिका आदि दी जाती
यह तो वे बातें हुई जो पांडुलिपि के रूप का बाह्य और अन्तरंग रूप का ज्ञान कराती हैं। 4. अन्तरंग परिचय
___ इसके बाद विवरण या प्रतिवेदन (रिपोर्ट) में कुछ और आन्तरिक परिचय भी देना होता है । यह अन्तरंग परिचय भी स्थूल ही होता हैं । इस परिचय में निम्नांकित बातें बताई जाती हैं :
(क) ग्रन्थकार या रचियता का नाम : यथा, टेसीटरी-“दम्पति विनोद ........... (1) इसका कर्ता जोशीराया है ।" बीकानेर के राठौर्डारी ख्यात (2) ग्रन्थ का निर्माण चारण सिढायच दयालदास द्वारा हुआ । ढोला मारवरणी री बात-- रचयिता-अज्ञात'
रचयिता के सम्बन्ध में अन्य विवरण जो ग्रन्थ में उपलब्ध हो वह भी यहाँ देना चाहिये । यथा, निवास स्थान, वंश परिचय आदि ।
1. परम्परा (28-29), पृ. 48 ।
राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, पृ. 38।
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