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पाण्डुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसंधान/89 (8) प्रत्येक अध्याय के अन्त में भी यदि पुष्पिका हो तो उसे भी उद्धृत कर
देना चाहिये। 5. अन्तरंग परिचय का आन्तरिक पक्ष (क) प्रतिपाद्य विषय का विवरण । यथा, टेसीटरी-इसी अध्याय में पृ. 74 पर (ग)
'नागौर रे मामले री बात' का विवरण देखें। (ख) प्रारम्भ का अंश, कम से कम एक छन्द चार चरणों का तो देना ही चाहिए।
यदि प्रारम्भ के अंश में कुछ और ज्ञातव्य सामग्री हो तो उसे भी उद्धृत कर दिया
जाय, जैसे पुष्पिका । (यथावत् उद्धृत करनी होती है।) (ग) प्रारम्भ में यदि पुष्पिका या कोलोफोन हो तो उसे भी यथावत् उद्धृत करना
होगा। (घ) मध्य भाग से भी कुछ अंश देना चाहिये । ये अंश ऐसे चुने जाने चाहिये कि उनसे
कवि के कवित्य का आभास मिल सके। (ङ) अन्त का अंश, इस अंश में अन्तिम पुष्पिका, तथा उससे पूर्व का भी कुछ अंश
दिया जाता है। (च) परम्परागत फलश्रुति, लेखक की निर्दोषिता (जैसा देखा वैसा लिखा) तथा श्लोक
या अक्षर की संख्या । (छ) अन्य उल्लेखनीय बात या उद्धरण । यथा,
प्राप्ति स्थान, एवं उस व्यक्ति का नाम एवं परिचय जिसके यहाँ से ग्रन्थ उपलब्ध हुआ है। विवरण के लिए प्रस्तावित प्रारूप
काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा ने विवरण लेने वाले व्यक्तियों की सुविधा के लिए प्रारूप मुद्रित कर दिया था । विवरण लेनेवाला उसमें दिये विविध शीर्षकों के अनुकूल सूचना भर देता है । इस योजना से यह भय नहीं रहता है कि खोजकर्ता किन्हीं बातों को छोड़ देगा । ऊपर जो विवेचन दिया गया है उसके आधार पर एक प्रारूप यहाँ प्रस्तुत किया जाता है।
हस्तलिखित ग्रन्थ (पांडलिपि ) का सामान्य
परिचयात्मक विवरण (रिपोर्ट) क्रमांक........
पांडुलिपि का प्रकार.......
गुटका/पोथी....
1. पांडुलिपि (ग्रन्थ) का नाम......" 2. कर्ता या रचयिता::....... 3. रचना काल....... 4. पुस्तक की कुल पत्र संख्या.......
विशेष(क) कितने पृष्ठ या पन्ने कोरे छोड़े गये हैं । किस-किस स्थान पर छोड़े गये हैं........ (ख) क्या कुछ पृष्ठ/पन्ने अपाठ्य हैं । कहाँ कहाँ ?......"
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