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88 / पाण्डुलिपि - विज्ञान
(ख)
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रचनाकाल - : इस विवरण में कर्त्ता ने दिया है । यदि उसने चाहिये ।
हाँ, यदि आपके पास ऐसे कुछ ग्राधार हैं कि आप इस कृति के सम्भावित काल का अनुमान लगा सकते हैं तो अपने अनुमान को अनुमान के रूप में दे सकते हैं । (ग) ग्रन्थ रचना का उद्देश्य यथा, "बीकानेर के राठौड री ख्यातः ग्रन्थ का निर्माण "बीकानेर के महाराजा सिरदार सिंह के आदेश पर किया गया है ।"
"इसी प्रकार ये उद्देश्य भिन्न-भिन्न ग्रन्थों के भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, यथा-राजाज्ञा से' और 'सुफल प्राप्त्यर्थ' विष्णुदास ने 'पांडव चरित्र' लिखा ।
(घ) ग्रन्थ रचना का स्थान । यथा, 'गढ़ गोपाचल वैरिनि सालू' 3 यदि किसी के आश्रय में लिखा गया है तो श्राश्रयदात सिंघ राउवर वीरा' तथा श्राश्रयदाता का अन्य परिचय |
(झ)
वही रचना - काल दिया जायगा जी ग्रन्थ में ग्रन्थ रचना काल नहीं दिया तो यही सूचना दी जानी
(च) भाषा विषयक अभिमत - यहाँ स्थूलतः यह बताना होगा कि संस्कृत, डिंगल, प्राकृत, अपभ्रंश, बंगाली, गुजराती, ब्रज, अवधी, हिन्दी (खड़ीबोली), तामिल या राजस्थानी (मारवाड़ी, हाड़ौती, ढूँढारी, शेखावाटी), आदि विविध भाषाओं में से किस भाषा में ग्रंथ लिखा गया है ।
(ST)
(ट)
यहाँ भाषाओं की यह सूची संकेत मात्र देती है । भाषाएँ तो और भी हैं, उनमें से किसी में भी यह ग्रंथ लिखा हुआ हो सकता है ।
-1 भाषा का कोई उल्लेखनीय वैशिष्ट्य ।
लिपि एवं लिपिकार का नाम
लिपिकार का कुछ और परिचय ( ग्रन्थ में दी गयी सामग्री के आधार पर)
1. किस गुरु-परम्परा का शिष्य
2.
3.
4.
माता-पिता तथा भाई आदि के नाम
लिपिकार के आश्रयदाता प्रतिलिपि कराने का अभिप्राय :
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क - किसी राजकुमार के पठनार्थ ख - किसी अन्य के लिए पठनार्थ ग- स्व- पठनार्थ
घ- प्रदेश - पालनार्थ
ड - शुभ फल प्राप्त्यर्थ
च --- दानार्थ प्रादि-आदि
लिपिकार के आश्रयदाता का परिचय प्रतिलिपि का स्वामित्व
का नाम - यथा, 'डोंगर
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1. विस्तृत विवरण के लिए देखिए 'काल निर्णय की समस्या' विषयक सातवाँ अध्याय |
2. परम्परा (28-29), पृ.१1
3. पांडव चरित, पृ. 5 1