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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 4. www.kobatirth.org पांडुलिपि प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसंधान / 85 (ख) 1-- कागज के प्रकार के साथ कागज के सम्बन्ध में ही कुछ अन्य बातें और दी जाती हैं : 1. 2. 3. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कागज का रंग स्वाभाविक है या काल - प्रभाव से अस्वाभाविक हो गया है । क्या कागज कुरकुरा (Brittle) हो गया है ? कीड़ों-मकोड़ों या दीमकों या चूहों से खा लिया गया है ? कहाँ-कहाँ, कितना ? इससे ग्रन्थ के महत्त्व को क्या और कितनी क्षति पहुँची है । समस्त पांडुलिपि में क्या एक ही प्रकार का कागज है, या उसमें कई प्रकार के कागज हैं ? इन ग्रन्य बातों का अभिप्राय यह होता है कि कागज विषयक जो भी वैशिष्ट्य है वह विदित हो जाय । (ख) 2 -- कागज से काल-निर्धारण में भी सहायता मिल सकती है । इस दृष्टि से भी टीप देनी चाहिये । (ग) पत्रों की लम्बाई-चौड़ाई- -यह लम्बाई-चौड़ाई इंचों में देने की परिपाटी 'लम्बाई इंच चौड़ाई इंच' इस रूप में देने में सुविधा रहती है। अब तो सेंटीमीटर में देने का प्रचलन भी आरम्भ हो गया है । 3. पांडुलिपि का रूप - विधान (क) पंक्ति एवं प्रक्षर परिमाण - सबसे पहले लिपि का उल्लेख होना चाहिये । देवनागरी है या अन्य ?1 यह लिपि शुद्ध है या अशुद्ध ? पांडुलिपि के अन्तरंग-रूप का यह एक पहलू है । प्रत्येक पृष्ठ में पंक्तियों की गिनती दी जाती है, दी जाती है। इनकी श्रीमत संख्या ही दी जाती है। अक्षर-परिमाण विदित हो जाता है । तथा प्रत्येक पंक्ति में ग्रक्षर संख्या इससे सम्पूर्ण ग्रन्थ की सामग्री का संस्कृत ग्रन्थों में 'अनुष्टुप' को एक श्लोक की इकाई मान कर श्लोक संख्या दे दी जाती थी । इस सम्बन्ध में 'भाग्यसं० अ लेखन कला' से यह उद्धरण यहां देना समीचीन होगा : 3. ........... ग्रन्थनी श्लोक संख्या गरवा माटे कोईपण साधुने थे नकल आपवामां श्रावती ने ते साधु "बत्रीस ग्रक्षरता श्रेक श्लोक" ने हिसावे श्राखा ग्रन्थना अक्षरों गणीने श्लोक संख्या नक्की करतो" ।। 3 बत्तीस अक्षर का एक अनुष्टुप श्लोक होता है : एक चरण में 8 अक्षर, पूरे चार चरणों में 84 = 32 अक्षर । इस प्रकार गणना का मूलाधार अक्षर ही ठहरता है । (ख) पत्रों की संख्या -पंक्ति एवं ग्रक्षरों का विवरण देकर यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि पत्रों की पूर्ण संख्या भी दे दी जाय । यथा टसीटरी, 436 पत्रों का वृहदाकार मारवाड़ी लिपि में लिपिबद्ध 1. यथा- देसीटरी "कुछ देवनागरी में और कुछ है ।" परम्परा (28-29), पृ. 146 1 2. यह पद्धति भी है कि कम से कम अक्षरों की संख्या और अधिक से अधिक अक्षरों की संख्या दे दी जाती है, यथा 23 से 25 तक । मारती जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ. 106 For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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