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66/पाण्डुलिपि-विज्ञान
के रूप की बना लेते हैं, उसमें छेद कर उस डोर या डोरी की इस चकरी में से निकाल कर बाँधते हैं, यथार्थ में ये चकरियाँ ही ग्रन्थि या गांठ कही जाती हैं ।। हड़ताल
पुस्तक-लेखन में 'हड़ताल' फेरने का उल्लेख मिलता है । हड़ताल या हरताल का उपयोग हस्तलेखों में उन स्थलों या अंशों को मिटाने के लिए किया जाता था, जो गलत लिख लिये गये थे । 'हरताल' से पीली स्याही भी बनाई जाती है । हरताल फेर देने से वह गलत लिखावट पीले रंग के लेप से ढक जाती है। कभी-कभी हड़ताल के स्थान पर मफेद का उपयोग किया जाता है। परकार
अोझाजी ने बताया है कि प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों में कभी-कभी विषय की समाप्ति आदि पर स्याही से बने कमल मिलते हैं । वे परकारों से ही बनाये हुए मिलते हैं। वे इतने छोटे होते हैं कि उनके लिए जो परकार काम में आये होंगे वे बड़े सुक्ष्म मान के होने चाहिये ।
1. भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ.201 2. भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ. 1571
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