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68/पाण्डुलिपि-विज्ञान
पांडुलिपियाँ थीं, 50,000 मुद्रित ग्रन्थ थे । इसी प्रकार बिहार के ही भरतपुरा गांव के श्री गोपाल नारायण सिंह का संग्रहालय भी पहले निजी ही था । सन् 1912 में इसे सार्वजनिक पुस्तकालय बनाया गया। इस समय इसमें 4000 पांडुलिपियाँ हैं, ऐसा बताया जाता है। खोजकर्ता
हस्तलेखों की खोज करने वाले व्यक्ति पांडुलिपि-विज्ञान के क्षेत्र के अग्रदूत माने जा सकते हैं। पर, उन्होंने जिम समय से कार्य प्रारम्भ किया, उस समय भी दो कोटियों के व्यक्ति पांडुलिपियों के क्षेत्र में कार्य में संलग्न थे । एक कोटि के अन्तर्गत उच्चस्तरीय विद्वान् थे जो हस्तलिखित ग्रन्थों और ऐतिहासिक सामग्री की शोध में प्रवृत्त थे, जैसे-कर्नल टॉड, हॉर्नले, स्टेन कोनो, बेडेल, टेसिटरी, आरेल स्टाइन, डॉ० ग्रियर्सन, महामहोपाध्याय हर प्रसाद शास्त्री, काशी प्रसाद जायसवाल, मुनि पुण्यविजय जी, मुनि जिनविजय जी, डॉ० राहुल सांकृत्यायन, डॉ० रघुवीर, डॉ० भण्डारकर, श्री अगरचन्द नाहटा, डॉ० भोगीलाल मांडेसरा, डॉ० पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, भाष्कर रामचन्द्र भालेराव आदि । दूसरी कोटि उनकी है जिन्हें एजेण्ट अथवा खोजकर्ता कहा जा सकता है । ये किसी संस्था की ओर से इस कार्य के लिए नियुक्त थे ।
इनमें से प्रथम कोटि का कार्य विशिष्ट प्रकृति का होता है, उसके अन्तर्गत उनको पांडुलिपि के मर्म और महत्त्व का तथा उसके योगदान का वैज्ञानिक प्रामाणिकता के आधार पर निर्णय करना होता है ।
दूसरा वर्ग सामग्री एकत्र करता है । घर-घर जाता है और जहाँ भी जो सामग्रो उसे मिलती है वह उसे या तो उपलब्ध करता है या फिर उसका विवरण या टीप ले लेता है । स्वयं वस्तु को या ग्रन्थ को प्राप्त करना तो बड़ी उपलब्धि है । पर उसका विवरण, दीप या प्रतिवेदन (रिपोर्ट) भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है । पुस्तक उपलब्ध हो जाने पर भी विवरण प्रस्तुत करना पहली आवश्यकता है। किन्तु इससे भी पहला चरण तो ग्रन्थ तक पहुँचना ही है।
___ अतः सबसे पहला प्रश्न यही है कि पांडुलिपियों का पता कैसे लगाया जाय ? इसके लिए ग्रन्थ-खोजकर्ता में साधारण तत्पर बुद्धि होनी ही चाहिये, उसमें समाज-प्रिय या लोकप्रिय होने के गुण होने चाहिये । उसमें विविध व्यक्तियों के मनोभावों को तोड़ने या समझने की बुद्धि भी होनी चाहिये जो साधारण बुद्धि का ही एक पक्ष है । फिर, उसके पास कोई ऐसा गुण (हुनर) भी होना चाहिये जिससे वह दूसरों की कृतज्ञता पा सके । जहाँ ग्रन्थों की टोह लगे वहाँ के लोगों का विश्वास पा सकने की क्षमता भी होना अपेक्षित है। विश्वासपात्रता प्राप्त करने के लिए उस क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले व्यक्तियों से परिचय-पत्र ले लेने चाहिये । ऐसे क्षेत्रों में मुखिया, पटवारी, जमींदार तथा पाठशाला के अध्यापक अपनाअपना प्रभाव रखते हैं । इन व्यक्तियों से मिलकर हम अच्छी तरह ग्रन्थों का पता भी लगा
कते हैं तथा सामग्री भी जुटा सकते हैं। ज्योतिष या हस्तरेखा-विज्ञान और वैद्यक को कुछ जानकारी ग्रन्थ-खोजकर्ता को सहायक सिद्ध हुई है । इनके कारण लोग उसकी ओर सहज रूप से आकृष्ट हो सकते हैं। इसी प्रकार पशु-चिकित्सा का कुछ ज्ञान हो तो क्षेत्रीय कार्य में उपयोगी होगा तथा दैनिक जीवन में काम आने वाली ऐसी अन्य चीजों को यदि वह जानता
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