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76 पाण्डुलिपि-विज्ञान
सामान्य ग्रंथ" । तब पत्रों की संख्या बतायी है, '132' । पत्रों का आकार है 5" x51" । इन 132 पत्रों में सामग्री का ठीक अनुमान बताने के लिए यह भी उल्लेख किया गया है। कि कितने और कौन-कौन से पृष्ठ खाली हैं। फिर पंक्तियों की गिनती प्रति पृष्ठ तथा प्रत्येक पंक्ति में अक्षर का अनुमान भी बताया गया है कि इसमें 13 से 27 अक्षरों वाली 7 से 16 तक पंक्तियाँ हैं।
पुस्तक चित्रित है। चित्र कितने हैं ? कैसे हैं ? और किस विषय के हैं, इनका विवरण भी दिया गया है--
चित्र कितने हैं ? 16 किन पृष्ठों पर हैं ? 'पृ. 100-~~115 तक' पर । कैसे हैं ?
नौसिखिये के बनाये, पानी के रंगों के । विषय क्या है ?
'रसुल रा दूहा' को चित्रित करने वाले । फिर लिपिकाल का अनुमान दिया गया है :-- "कोई 250 वर्ष पुराना लिपिबद्ध ।"
यदि लेखक और लिपिकार का भी उल्लेख कहीं ग्रन्थ में हुआ है तो उसका विवरण भी है
कहाँ उल्लेख है ? पृ० 7 ब पर लिपिकाल क्या है ? स० 1696, जेठ सुद 13, शनिवार लिपिकार का नाम क्या है ? रघुनाथ
लिपि की प्रकृति भी बतायी गयी है--लिपि मारवाड़ी। एक वैशिष्ट्य भी बताया है कि 'ड' तथा 'ड' में अन्तर नहीं किया गया। तब ग्रन्थ के विषय का परिचय दिया गया है।
कुछ और उदाहरण लें : अन्य उदाहरण : पृथ्वीराज रासो
(क) प्रति सं० 5 (ख) साइज 10X11 इंच (ग) 1-पुस्तकाकार, (ग) 2-अपूर्ण, और (ग) 3-बहुत बुरी दशा में है। (घ) इसके आदि के 25 और अन्त के कई पन्ने गायब हैं जिससे आदि-पर्व के प्रारम्भ के 67 रूपक और अन्तिम प्रस्ताव (वाण वेध सम्यों) के 66वें रूपक के बाद का समस्त भाग जाता रहा है। इस समय इस प्रति के 786 (26-812) पन्ने मौजूद हैं। बीच में स्थान-स्थान पर पन्ने कोरे रखे गये हैं जिनकी संख्या कुल मिलाकर 25 होती है। प्रारम्भ के 25 पन्नों के नष्ट हो जाने से इस बात का अनुमान तो लगाया जा सकता है कि अन्त के भी इतने ही पन्ने गायब हुए हैं । (ड) 1-पर अन्त के इन 25 पन्नों में कौन-कौनसे प्रस्ताव लिखे हुए थे, इनमें कितने पन्ने खाली थे, इस प्रति को लिखवाने का काम कब पूरा हा था और (ङ) 2-यह किसके लिए लिखी गई थी ? इत्यादि बातों को जानने का इन पन्नों के गायब हो जाने से अब कोई साधन नहीं है। लेकिन प्रति एक-दो वर्ष के अल्पकाल में लिखी गई हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता, क्योंकि (च) इसमें नौ-दस तरह की लिखावट है और (छ) प्रस्तावों का भी कोई निश्चित क्रम नहीं है। ज्ञात होता है, रासो के भिन्न-भिन्न प्रस्ताव जिस क्रम से और जब-जब भी हस्तगत हुए वे उसी क्रम से इसमें लिख लिये गये हैं। (ज) 'ससिव्रता सम्यो',
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