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पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसंधान / 75
है और ड तथा ड में भेद नहीं किया गया है । ग्रन्थ में निम्न कृतियाँ हैं : - (क) परिहाँ दुहा वगेरे फुटकर वातां, पृ० 1 9 11 ब (ख) नागौर रै मामले री कविता, पृ० 12 अ 21 अ। ।. .
इसमें तीन प्रशस्ति कविताएँ हैं-एक गीत एक झमाक तथा एक नीसारणी जिसका विषय करणसिंह और नागौर के अमरसिंह की प्रतिस्पर्धा है, जिसका उद्धरण दूसरे अनुच्छेद में नीचे दिया गया है। इन कविताओं में मुख्यतया बीकानेर के सेनाध्यक्ष मुहता वीरचन्द की वीरता का बखान किया गया है। गीत का रचयिता जगा है और झमाक का लेखक चारण देवराज बीकूपुरिया है । नीसांणी के लेखक का नाम नहीं दिया गया है।
तीन कविताओं की प्रारम्भिक पंक्तियाँ क्रमशः निम्न प्रकार हैं : - गीत--दलांथम रूदरु भ..............."पादि
झमाल-कैरव पाँडव कलहीया......"पादि
नीसांणी-अबरल दवी अषट सपर""""नादि (ग) नागौर रै मामले री बात, पृ० 27 अ-45 ब ।
जाखणिया ग्राम को लेकर बीकानेर और नागौर के बीच सं0 1699-1700 के मध्य जो संघर्ष हुआ था उसका बड़ा बारीक और दिलचस्प वृतांत इसमें है । जबसे नागौर, जोधपुर के राजा गजसिंह के पुत्र राव अमरसिंह को मनसब में प्रदान किया गया, जाखणिया गांव बीकानेर के महाराजा के अधिकार में ही चला आता था परन्तु सं० 1699 में नागौरी लोगों ने जाखणिया ग्राम के आस-पास खेत बो दिये इससे झगड़े का सूत्रपात हुआ जिसका अन्त सं० 1700 के युद्ध के बाद हुआ, जिसमें अमरसिंह की फौज को खदेड़ दिया गया और उसका सेनापति सिंघवी सींहमल भाग खड़ा हुआ । युद्ध सम्बन्धी वृर्तान्त ठेठ अमरसिंह की मृत्यु तक चला है । यह छोटी-सी कृति बड़े महत्त्व की है क्योंकि इसमें अनेक बातों पर बारीकी से प्रकाश डाला गया है जो उस समय की सामन्ती जीवन-व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश डालती हैं । इसका प्रारम्भ होता है--
बीकानेर महाराजा श्री करनीसिंह जी रै राज ने नागौर राउ अमरसिंह गजसिंघात रो राज सु नागौर बीकानेर रो कॉकड़ गांव (०) 1 जाषपीयो सु गाँव बीकानेर रो हुतो ने नागौर रा कहे नु गांव माहरोद्वीवहीज असरचो हुतो......"प्रादि ।
' अन्त इस प्रकार है
इसड़ो काम मुहते रामचन्द नु फबीयो बड़ो नावं हुयो पातसाही माहे बदीतो हुवो इसड़ो बीकानेर काही कामदार हुयो न को हुसी। (घ) रसालू रा दूहा पृ० 99 व 115 ब । इसमें 33 दोहे हैं। प्रारम्भ-ऊँच (?) 3 महल्ल चवंदड़ी ।।2।। यह दूसरे दोहे का चौथा चरण है और अन्तिम राजा भोजु जुहारवै ॥3111 (ङ) किवलास रा दूहा पृ० 116 3--117 ब । इसमें 30 छन्द हैं । प्रारम्भ किरणही सावरण संयोग-आदि।
इस विवरण में टेसीटरी महोदय ने सबसे पहले ग्रन्थ के आकार को हृदयंगम कराने के लिए इसे गुटका बताया है। उसके आगे भी व्याख्या में 'छोटा-सा ग्रन्थ' कहा है। टेसीटरी महोदय ग्रन्थ की आकृति के साथ उसके वेष्टन आदि का भी उल्लेख कर देते हैं : यथा, ग्रंथांक एक में पहली ही पंक्ति है "394 पत्रों का चमड़े की जिल्द में बँधा वृहदाकार ग्रन्थ" । संथांक 2 में भी ऐसा ही उल्लेख है कि "कपड़े की जिल्द में बँधा 82 पत्रों का
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