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40/पाण्डुलिपि-विज्ञान
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ये चिह्न विभक्ति और ये जोड़े से अंक पाते हैं, जिनमें से वचन में भ्रांति न हो पहला अंक विभक्ति-द्योतक (1 = इसलिए लगाये जाते हैं। प्रथमा 6 षष्ठी आदि) तथा
दूसरा वचन-द्योतक होता है । (1 = एक वचन, 2 = द्विवचन, 3 = बहुवचन) जैसे 11 का अर्थ
है प्रथमा एक वचन ।। 13. पदों के अन्वय में अन्वयदर्शक चिह्न शिरोभाग पर अन्वय क्रम
भ्रांति
द्योतक अंक-यथा न ततोऽर्थान्तरं 42 स्व संवेदनं प्रत्यक्षम् यहाँ 1 संख्या वाला पद पहले, 2 का उसके बाद, 3 उसके बाद तथा उसके बाद 4 अंक वाला इस क्रम में अन्वय होता है । ठीक अन्वय हुमा : ततोऽर्थान्तरं प्रत्यक्ष न स्वसंवेदनम् ।
14. विशेषण-भ्रम विशेषण विशेष्य सम्बन्ध विशेष्य-भ्रम* दर्शक चिह्न
कभी-कभी वाक्यों में, प्रायः लम्बे वाक्यों में विशेषण कहीं और विशेष्य कहीं पड़ जाता है तब शिरोपरि लगाये गये उक्त चिह्नों से विशेषण-विशेष्य बताये जाते हैं,
इससे भ्रान्ति नहीं हो पाती । कुछ अन्य सुविधाओं के लिए कुछ अन्य चिह्न भी मिलते हैं जिनसे 'टिप्पणी' का पता चलता है, अथवा किसी शब्द का किसी दूसरे पद से विशिष्ट सम्बन्ध विदित हो जाता है ।
ऊपर के विचरण से यह भी स्पष्ट होगा कि ये चिह्न दो अभिप्राय सिद्ध करते हैं : एक तो इनसे लिपिकार की त्रुटियों का संशोधन हो जाता है, तथा दूसरे, पाठक को पाठ ग्रहण करने में सुविधा हो जाती है। हमने जिन पर पुष्प (*) लगाए हैं, वे त्रुटि मार्जन के लिए नहीं, पाठक की सुविधा के लिए हैं। (7) छूटे अंश की पूर्ति के चिह्न
भूल से कभी कोई शब्द, शब्दांश, या वाक्यांश लिखने से छूट जाते हैं तो उसकी पूर्ति के कई उपाय शिलालेखों या पांडुलिपियों में किये गये मिलते हैं ।
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